पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१११

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[११०] अप्रिय भ्राता करन सुभाव सषी बिन। भानु तपन घम किसान ग्रह रक्षक ठठीया आदि तें घाट मध्य नंदनंदन रहत ॥ नदिन नयन के उर में बान मारत है तासों मरन जीयन नाही देत ऐसो राग गाढे है । सिंधु रिपु अगस्त हित राम पतनी माता मंगली सिब अत्र त्रिसूल आदि ते मंत्र कासों पढो है ॥ देपि बिन मन आTन कर लेत के देषे बिन नाहीं रहो जात यामें सूरसंकर अलंकार करत हौँ अनेक अलंकार रूपक विभावनादि ॥ ५० ॥ ___ इंद्र उपवन इंद्रअरि दनुजेंद्र इष्ट सहाय । सुंन एक जु थाप कीने होत आदि मिलाय ॥ उभयरास समेत दिन मनिकंन का ए दोडू। सूरदास अनाथ के है सदा राषन होडू ॥ ११७॥ टिप्पणी-इस का टीका नहीं था परंतु सरदार कवि ने लिखा है वह प्रकाश किया जाता है। इंद्रवन नंदन इंद्र अरि दनुन दनुजेंद्र रावन ताके इष्ट सिब तन को सहाई नंदी सुंन दै एक तें दस पाप ते नरक इन के आदि बरन ते नंदनंदन भये ।। अरु उभर्य कहैं दो रास वृप दिन मन सूरज की पुत्री राधा ए दोइहै सुर के पालन ।। ११६ ।। प्रथम ही प्रघ जागाते में प्रगट अद- भुत रूप । ब्रह्मराव बिचारि ब्रह्मा राषु नाम अनूप ॥ पान पय देबी दियो सिव आदि सुर सुष पाय। कहा दुर्गा पुत्र तेरो भयो अति सुष पाय ॥ पार पायन सुरन के पितु सहित अस्तत कीन।