विदेशों में लगी हुई यह पूंजी किस प्रकार बंटी हुई है ? वह कहां लगायी गयी है? इस प्रश्न का उत्तर केवल मोटे-मोटे तौर पर ही दिया जा सकता है, पर जो आधुनिक साम्राज्यवाद के कुछ आम संबंधों तथा रिश्तों पर प्रकाश डालने के लिए काफ़ी है।
विदेशी पूंजी का मोटे-मोटे तौर पर वितरण
(१९१० के लगभग)
ग्रेट ब्रिटेन | फ्रांस | जर्मनी | कुल योग | |
(अरब मार्को में) | ||||
यूरोप | ४ | २३ | १८ | ४५ |
अमरीका | ३७ | ४ | १० | ५१ |
एशिया, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया | २९ | ८ | ७ | ४४ |
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कुल योग | ७० | ३५ | ३५ | १४० |
ब्रिटिश पूंजी लगाने के मुख्य क्षेत्र ब्रिटिश उपनिवेश आदि हैं जो, एशिया की बात तो जाने दीजिये , अमरीका में भी बहुत बड़े-बड़े हैं ( जैसे कनाडा)। इस उदाहरण में, पूंजी के विपुल निर्यात का बहुत गहरा संबंध विस्तृत उपनिवेशों के साथ है , साम्राज्यवाद के लिए जिनके महत्व का उल्लेख हम आगे चलकर करेंगे। फ्रांस के मामले में परिस्थिति इससे भिन्न है। फ्रांस से जितनी पूंजी का निर्यात किया गया है वह मुख्यतः यूरोप में, सबसे बढ़कर रूस में (कम से कम दस अरब फ़्रांक ), लगी हुई है। यह पूंजी मुख्यतः ऋण के रूप में, सरकारी ऋणों के रूप में, लगायी गयी है, वह प्रौद्योगिक कारोबार में लगी हुई पूंजी नहीं है। फ्रांसीसी साम्राज्यवाद को, जो ब्रिटिश औपनिवेशिक साम्राज्यवाद से भिन्न है, हम सूदखोर साम्राज्यवाद कह सकते हैं। जर्मनी में एक
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