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विदेशों में लगी हुई पूंजी

(अरब फ्रांकों में)

वर्ष ग्रेट ब्रिटेन फ्रांस जर्मनी
१८६२ ३.६
१८७२ १५.० १०(१८६९)
१८८२ २२.० १५(१८८०) ?
१८९३ ४२.० २०(१८९०) ?
१९०२ ६२.० २७-३७ १२.५
१९१४ ७५-१००.० ६० ४४.०

इस तालिका से पता चलता है कि बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में ही जाकर पूंजी के निर्यात ने व्यापक रूप धारण किया। युद्ध से पहले विदेशों में तीन मुख्य देशों द्वारा लगायी गयी पूंजी १,७५,००,००,००,००० और २,००,००,००,००,००० फ्रांक के बीच थी। यदि ५ प्रतिशत की मामूली दर से भी हिसाब लगाया जाये तो इस राशि से होनेवाली आय प्रति वर्ष ८ से १० अरब फ़्रांक तक रही होगी। संसार के अधिकांश देशों तथा राष्ट्रों के साम्राज्यवादी उत्पीड़न तथा शोषण के लिए, इस बात के लिए कि गिने-चुने धनवान राज्य पूंजीवादी ढंग से दूसरों का खून चूसकर जीवित रहें, कितना ठोस आधार है !


डा० सीगमंड शिल्दर, «Entwicklungstendenzen der Weltwirtschaft» ( विश्व अर्थतंत्र के विकास की प्रवृत्तियां- अनु०), बर्लिन १९१२, खंड १, पृष्ठ १५० ; जार्ज पेश , “जर्नल आफ़ दे रायल स्टेटिस्टिकल सोसायटी" में "ग्रेट ब्रिटेन द्वारा लगायी गयी पूंजी , आदि", खंड ७४, १९१०-११, पृष्ठ १६७ तथा उसके बाद के पृष्ठ ; जार्ज दियूरिच , «L'Expansion des banques allemandes á l'étranger, ses rapports avec le développement economique de l' Allemagnev (जर्मनी के आर्थिक विकास के संबंध में विदेशों में जर्मन बैंकों का विस्तार - अनु०), पेरिस १९०९, पृष्ठ ८४।

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