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इन आंकड़ों से फ़ौरन उन चार सबसे धनी पूंजीवादी देशों का चित्र हमारे सामने उभरकर आ जाता है, जिनमें से हर एक के पास लगभग १०० से १५० अरब फ़्रांक तक की रकम की प्रतिभूतियां हैं। इन चार देशों में से दो, इंगलैंड तथा फ्रांस , सबसे पुराने पूंजीवादी देश हैं , और जैसा कि हम आगे चलकर देखेंगे, उनके पास सबसे अधिक उपनिवेश हैं ; बाक़ी दो, संयुक्त राज्य अमरीका तथा जर्मनी, विकास की तीव्रता की दृष्टि से तथा इस दृष्टि से कि उद्योगों में पूंजीवादी इजारेदारियों का विस्तार किस हद तक हुआ है, प्रमुख पूंजीवादी देश इन चारों देशों के पास मिलाकर ४,७९,००,००,००,००० फ्रांक है, अर्थात् संसार की कुल वित्तीय पूंजी का ८० प्रतिशत भाग। लगभग बाक़ी तमाम दुनिया किसी न किसी रूप में इन अंतर्राष्ट्रीय महाजन देशों की, विश्व वित्तीय पूंजी के इन चार " स्तंभों" की, कमोबेश क़र्ज़दार और उनकी आसामी है।

परावलम्बन तथा वित्तीय पूंजी के संबंधों के इस अंतर्राष्ट्रीय जाल का निर्माण करने में पूंजी के निर्यात की जो भूमिका है उसकी जांच करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

४. पूंजी का निर्यात

पुराने पूंजीवाद के जमाने में, जब खुली प्रतियोगिता का पूरा राज था, माल का निर्यात उसकी विशेषता थी। पूंजीवाद की नवीनतम अवस्था में, जबकि इजारेदारियों का राज है, पूंजी का निर्यात उसकी विशेषता है।

अपने विकास की चरम अवस्था में बिकाऊ माल का उत्पादन पूंजीवाद है, जहां पहुंचकर श्रम-शक्ति स्वयं एक बिकाऊ माल बन जाती है। आंतरिक विनिमय की, और विशेषतः अंतर्राष्ट्रीय विनिमय की,

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