कि उसे बेहरेनस्ट्रासे में" ( बर्लिन की वह सड़क जिसपर “जर्मन बैंक" दफ्तर है ) “एक अच्छी-सी नौकरी मिल जाये?"*[१] १९०९ में «Die Banki के प्रकाशक अल्फ्रेड लैंसबर्ग ने एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था "बिजेन्टाइनवाद का आर्थिक महत्व", जिसमें उन्होंने लगे हाथों विल्हेल्म द्वितीय के फ़िलिस्तीन के दौरे का और "इस यात्रा के तात्कालिक परिणाम" का "अर्थात् बगदाद रेलवे के निर्माण उल्लेख किया था, "'जर्मन उद्यमशीलता की उस महान' घातक 'उपज'" का “जो हमारी तमाम भयंकर राजनीतिक ग़लतियों की अपेक्षा 'घेरेबंदी के लिए ज्यादा जिम्मेवार है'।" **[२] (घेरेबंदी से मतलब जर्मनी को सबसे अलग कर देने और उसके चारों ओर जर्मन-विरोधी साम्राज्यवादी मित्र-देशों का घेरा डाल देने की एडवर्ड सप्तम की नीति से है।) १९११ में इसी पत्रिका में लिखनेवाले अश्वेगे नामक लेखक ने, जिनका उल्लेख हम ऊपर कर आये हैं , एक लेख लिखा जिसका शीर्षक था “धनिकतंत्र तथा नौकरशाही", जिसमें उन्होंने फ़ोल्कर नामक एक जर्मन अफ़सर के किस्से का भंडाफोड़ किया था ; वह कार्टेल समिति का एक उत्साही सदस्य था, जिसके बारे में कुछ समय बाद पता यह चला कि उसे सबसे बड़े कार्टेल , यानी स्टील सिंडीकेट में बहुत ऊंचे वेतन पर एक नौकरी मिल गयी थी। ऐसे ही दूसरे उदाहरणों के कारण, जो किसी भी प्रकार आकस्मिक नहीं थे, इस पूंजीवादी लेखक को यह स्वीकार करने पर मजबूर होना पड़ा कि जर्मन संविधान में जिस आर्थिक स्वतंत्रता की गारंटी दी गयी है वह आर्थिक जीवन के कई क्षेत्रों में एक निरर्थक शब्द मात्र बनकर रह गयी है," और धनिकतंत्र के
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