पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/६७

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-बीच में लिखना चाहिए था)... "और 'स्प्रिंग स्टील' के शेयरों का भाव लगभग १०० प्रतिशत गिर चुका था, क्योंकि जो लोग इस बात को जानते थे वे अपने शेयर निकाल रहे थे ...

"देयादेय-फलक में हाथ की सफ़ाई दिखाने के इस लाक्षणिक उदाहरण से, जो ज्वाइंट स्टाक कम्पनियों में एक आम बात है, यह स्पष्ट हो जाता है कि इनके संचालक-मंडल निजी व्यापारियों की अपेक्षा ज्यादा बेधड़क होकर खतरनाक सौदों में हाथ डालने को क्यों तैयार रहते हैं। देयादेय-फलक तैयार करने के आधुनिक तरीक़ों के कारण साधारण शेयरहोल्डरों से संदिग्ध सौदों को छुपाना ही संभव नहीं होता बल्कि इससे वे लोग, जिनका इन सौदों से सबसे गहरा संबंध होता है, समय रहते अपने शेयर बेचकर असफल सट्टेबाजी के दुष्परिणामों से साफ़ बच भी जाते हैं जबकि निजी व्यापारी जो कुछ भी करता है उसमें वह अपने आपको जोखिम में डालता है ...

"बहुतेरी ज्वाइंट-स्टाक कम्पनियों के देयादेय-फलक हमें मध्य युग की उन पाण्डुलिपियों की याद दिलाते हैं जिनमें ऊपर दिखायी देनेवाले लेख को मिटाने पर ही उनके नीचे एक दूसरा लेख दिखायी देता था जिससे उस अभिलेख के वास्तविक अर्थ का पता चलता था।" (ये पाण्डुलिपियां चर्मपत्र पर लिखे गये ऐसे अभिलेख होते थे जिनमें मूल लेख को मिटाकर उसके ऊपर दूसरा लेख लिख दिया जाता था।)

"देयादेय-फलकों को ऐसा बना देने का कि कोई उनका मतलब ही न निकाल सके , सबसे सीधा-सादा और, इसलिए, सबसे आम तरीक़ा यह है कि 'बेटी कम्पनियां' क़ायम करके - या ऐसी कम्पनियों को कब्जे में करके - एक ही कारोबार को कई हिस्सों में बांट दिया जाये। विविध- कानूनी तथा गैर-कानूनी - उद्देश्यों के लिए इस पद्धति की उपयोगिता इतनी

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