वास्तव में अनुभव यह बताता है कि किसी कम्पनी के कारोबार का निर्देशन करने के लिए उसके केवल ४० प्रतिशत शेयरों पर अपना स्वामित्व रखना काफ़ी होता है ,*[१] क्योंकि कुछ छोटे-छोटे बिखरे हुए शेयरहोल्डरों के लिए, व्यवहारतः, शेयरहोल्डरों की आम मीटिंगों आदि में आना असंभव होता है। शेयरों के स्वामित्व का “जनवादीकरण", जिससे पूंजीवादी कुतर्की और सामाजिक-जनवादी कहे जानेवाले अवसरवादी यह आशा करते हैं (या कहते हैं कि वे आशा करते हैं) कि उससे “पूंजी का जनवादीकरण" होगा, छोटे पैमाने के उत्पादन की भूमिका तथा उसके महत्व को बल मिलेगा, आदि, वह वास्तव में वित्तीय अल्पतंत्र की शक्ति को बढ़ाने के अनेक उपायों में से एक है। और हां, यही कारण है कि अधिक उन्नत , अर्थात् अधिक पुराने और अधिक "अनुभवी" पूंजीवादी देशों में कानून द्वारा छोटी रक़म के शेयर जारी करने की इजाजत है। जर्मनी में कानून द्वारा एक हजार मार्क से कम रक़म के शेयर जारी करने की इजाजत नहीं है, और जर्मन वित्तीय जगत के थैलीशाह बड़ी ईर्ष्या के साथ इंगलैंड को देखते हैं जहां एक पौंड (२० मार्क , लगभग १० रूबल) के शेयर जारी करने की इजाजत है। सीमेन्स ने, जो जर्मनी का एक सबसे बड़ा उद्योगपति तथा “वित्त-सम्राट" है, ७ जून १९०० को राइखस्टाग में कहा कि “एक पौंड का शेयर ब्रिटिश साम्राज्यवाद का आधार है।"**[२] साम्राज्यवाद के बारे में इस व्यापारी की समझ उस कुख्यात लेखक की अपेक्षा ज्यादा गहरी और "मार्क्सीय" है जिसे रूसी मार्क्सवाद का एक संस्थापक⁸ समझा
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