बैंकों का कारोबार बहुत बड़े पैमाने पर चलाया जाये, और विशेष रूप से उस दशा में जब उद्योगों के साथ बैंकों के व्यापक संबंध हों। श्रम का यह विभाजन दो दिशाओं में होता है: एक तरफ़ तो उद्योगों के साथ संबंध का पूरा क्षेत्र उसके विशेष काम के रूप में किसी एक संचालक के सिपुर्द कर दिया जाता है ; दूसरी ओर हर संचालक कई अलग-अलग कारोबारों के, या उद्योगों की किसी एक ही शाखा में कारोबारों के किसी एक समूह के, या समान हित रखनेवाले कारोबारों के निरीक्षण का काम अपने जिम्मे ले लेता है"... (पूंजीवाद अलग-अलग कारोबारों के संगठित निरीक्षण की मंजिल में पहुंच चुका है) "कोई जर्मनी के उद्योगों का , या केवल पश्चिमी जर्मनी के उद्योगों का विशेषज्ञ बन जाता है" (जर्मनी का पश्चिमी भाग सबसे अधिक उद्योगीकृत है), "कोई दूसरा विदेशी राज्यों तथा विदेशी उद्योगों के साथ संबंध रखने और उद्योगपतियों के बारे में जानकारी का विशेषज्ञ बन जाता है और कोई स्टाक एक्सचेंजों का विशेषज्ञ बन जाता है, आदि। इसके अलावा बैंकों के हर संचालक के सिपुर्द बहुधा कोई खास इलाक़ा या उद्योग की कोई विशेष शाखा कर दी जाती है ; कोई संचालक मुख्यतः बिजली कम्पनियों के निरीक्षण मंडलों में काम करता है, तो दूसरा रसायन , बियर या चुकंदर की शकर के कारखानों के निरीक्षण मंडलों में, और तीसरा कुछ फुटकर प्रौद्योगिक कारखानों के निरीक्षण मंडलों में , पर इसके साथ ही इनमें से हर एक बीमा कम्पनियों के निरीक्षण मंडलों में भी काम करता है सारांश यह कि इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि बड़े बैंकों के कामकाज के विस्तार तथा उसकी विविधता में वृद्धि के साथ ही उनके संचालकों के बीच श्रम का विभाजन भी बढ़ जाता है, जिसका उद्देश्य (और परिणाम), कहना चाहिए', यह होता है कि उन्हें शुद्धतः बैंक के कारोबार के स्तर से कुछ ऊंचा उठाकर ज्यादा अच्छे विशेषज्ञ , उद्योगों की आम समस्याओं. और उद्योगों की हर शाखा की विशेष समस्याओं के बारे में ज्यादा अच्छी तरह फ़ैसला कर सकनेवाले बना दिया जाय और
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