पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/५२

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आवश्यक है - अर्थात् उनकी यह विशेषता कि वे उन आर्थिक हलचलों का, जो आकर उनमें केंद्रित होती हैं, एक अत्यंत नपा-तुला मापदंड ही नहीं होते बल्कि उन हलचलों का प्रायः बिल्कुल ही अपने आप काम करनेवाला नियामक-यंत्र भी होते हैं।"*[१]

दूसरे शब्दों में पुराना पूंजीवाद , खुली प्रतियोगिता का पूंजीवाद , जिसके साथ उसके अनिवार्य नियामक-यंत्र के रूप में स्टाक एक्सचेंज होता था , लुप्त होता जा रहा है। उसका स्थान लेने के लिए एक नये पूंजीवाद का जन्म हो गया है, जिसमें एक संक्रमणकालीन वस्तु की विशेषताएं स्पष्ट हैं, खुली प्रतियोगिता और इजारेदारी का मेल । स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न उठता है : नया पूंजीवाद किस चीज़ की ओर “संक्रमित" हो रहा है? परन्तु पूंजीवादी विद्वान इस प्रश्न को उठाने से डरते हैं।

"तीस बरस पहले , एक-दूसरे से खुली प्रतियोगिता करके व्यापारी "मजदूरों" के शारीरिक श्रम को छोड़कर अपने कारोबार से संबंधित नब्बे प्रतिशत आर्थिक काम स्वयं कर लेते थे। इस समय नब्बे प्रतिशत दिमागी काम पदाधिकारी करते हैं। बैंकों का कारोबार इस विकास में सबसे आगे है।"**[२] शुल्जे-गैवर्नित्ज़ की यह स्वीकारोक्ति हमारे सामने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर देती है: यह नया पूंजीवाद, साम्राज्यवाद की मंजिल में पूंजीवाद, किस चीज़ की ओर संक्रमित हो रहा है?

संकेंद्रण की प्रक्रिया के फलस्वरूप पूरे पूंजीवादी अर्थतंत्र में सबसे ऊपर जो थोड़े-से इने-गिने बैंक रह गये हैं, उनमें स्वाभाविक रूप से इजारेदारी समझौतों की दिशा में, बैंकों का एक ट्रस्ट बनाने की दिशा में, बढ़ने की प्रवृत्ति अधिकाधिक स्पष्ट रूप में दिखायी देती है। अमरीका


  1. *Riesser, पहले उद्धृत की गयी पुस्तक, चौथा संस्करण, पृष्ठ ६२९ ।
  2. ** Schulze-Gaevernitz «Grundriss der Sozialökonomik» «Die deutsche Kreditbanks, Tibingen, 1915, पृष्ठ १५१।

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