स्वच्छंद रूप से बढ़ने दिया , उनकी रफ्तार स्टाकों में हेर-फेर करके कुछ तेज़ ज़रूर कर दी गयी थी।"*[१]
यह पूंजीवादी पत्रकारिता की शक्तिहीनता का एक उदाहरण है , जो पूंजीवादी विज्ञान से केवल इस दृष्टि से भिन्न है कि पूंजीवादी विज्ञान कम ईमानदार है और वह समस्या के सार पर परदा डालने की कोशिश करता है, वह जंगल को पेड़ों की आड़ में छुपाने की कोशिश करता है। संकेंद्रण के परिणामों पर "आश्चर्य" प्रकट करना , पूंजीवादी जर्मनी की सरकार को, पूंजीवादी “समाज" को (“अपने आपको") "दोष देना", और इस बात से कि स्टाकों तथा शेयरों के प्रचलन से कहीं संकेंद्रण की रफ्तार तेज़" न हो जाये उसी प्रकार डरना जैसे जर्मन "कार्टेल" विशेषज्ञ त्शिएशकी अमरीकी ट्रस्टों से डरता है और जर्मन कार्टेलों को इसलिए "ज्यादा पसंद करते हैं" कि उनसे "संभव है कि ट्रस्टों की तरह प्राविधिक तथा आर्थिक प्रगति की रफ्तार अत्यधिक तेज़ न हो"**[२] - यह शक्तिहीनता नहीं तो और क्या है ?
लेकिन जो हक़ीक़त है वह हक़ीक़त है। जर्मनी में ट्रस्ट हैं ही नहीं, वहां तो “बस" कार्टेल हैं - परन्तु जर्मनी पर ज्यादा से ज्यादा तीन सौ बड़े-बड़े पूंजीवालों का शासन है, और इनकी संख्या घटती जा रही है। कुछ भी हो, सभी पूंजीवादी देशों में, उनके बैंकों के कारोबार के क़ानूनों में अंतर होने के बावजूद , बैंक पूंजी के संकेंद्रण तथा इजारेदारियों के निर्माण की प्रक्रिया को बहुत गहरा और तेज़ कर देते हैं।
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