"महान क्रान्ति १८७३ के संकट से, या यों कहें कि उसके बाद आनेवाली मंदी के वक्त से, शुरू हुई थी; और नवें दशक के आरंभ में उन नगण्य अल्पकालीन अवधियों को छोड़कर जब यह मंदी थोड़े समय के लिए दूर हो गयी और १८८९ के लगभग असाधारण रूप से प्रबल परन्तु बहुत ही थोड़े समय तक रहनेवाली तेज़ी के उस ज़माने को छोड़कर यह मंदी यूरोप के आर्थिक इतिहास में बाईस वर्ष तक छायी रही। १८८९-९० के थोड़े दिनों की तेजी के ज़माने में व्यापार की अनुकूल परिस्थितियों से फायदा उठाने के लिए काल व्यवस्था का बहुत बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया था। लेकिन अदूरदर्शी नीति के कारण चीज़ों के दाम और भी तेजी के साथ और भी ऊंचे चढ़ गये जो यदि कार्टेल न होते तो न होता, और इस तबाही में क़रीब-करीब सभी कार्टेल शर्मनाक मौत मर गये। इसके बाद पांच साल तक व्यापार की हालत बुरी रही और कीमतें गिरी रहीं, पर अब उद्योग में एक नयी भावना व्याप्त थी; मंदी को अब एक अनिवार्य बात नहीं माना जाता था: अब लोग मंदी को केवल आगे आनेवाली तेज़ी के पहले का ठहराव मानने लगे थे।
"अब कार्टेल-आन्दोलन ने अपने दूसरे युग में पैर रखा: अब काल एक क्षणिक घटना होने की जगह आर्थिक जीवन का एक आधार बन गये। एक के बाद एक क्षेत्र में, खास तौर से कच्चे माल के उद्योग में, उनका राज फैलने लगा। अंतिम दशक के प्रारंभ में कार्टेल-पद्धति ने कोक सिंडीकेट के रूप में, जिसको आदर्श मानकर बाद में कोयला सिंडीकेट बना, इतनी कार्टेल-टेकनीक प्राप्त कर ली थी कि उसमें और उन्नति करना कठिन था । १९ वीं शताब्दी के अंत की भारी तेज़ी और १९००-०३ का संकट दोनों पहली बार - कम से कम खानों के और लोहे के उद्योगों में - एकदम कार्टेलों की छत्रछाया में आये। और यद्यपि उस समय यह बात अनोखी मालूम होती थी, पर अब
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