पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१८०

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संबंध पैदा होता है जो सबसे पहले और सबसे स्पष्ट रूप से इंगलैंड में इसलिए प्रकट हुआ कि वहां अन्य देशों की तुलना में साम्राज्यवादी विकास की कुछ विशेषताएं बहुत पहले ही दिखायी देने लगी थीं। कुछ लेखक, जैसे उदाहरण के लिए ल॰ मारतोव, "सरकारी आशावादिता" (कौत्स्की तथा हाइज़मैंस के ढंग की) का सहारा लेकर साम्राज्यवाद और मज़दूर वर्ग के आंदोलन में पाये जानेवाले अवसरवाद के पारस्परिक संबंध को–जो इस समय एक बहुत ही ज्वलंत तथ्य बन गया है–टाल जाने की कोशिश करते हैं। इस "सरकारी आशावादिता" का एक नमूना यह है : यदि प्रगतिशील पूंजीवाद के कारण ही अवसरवाद में वृद्धि होती या यदि ऐसा होता कि सबसे अच्छा वेतन पानेवाले मज़दूरों का ही झुकाव अवसरवाद की ओर होता, तो पूंजीवाद के विरोधियों के ध्येय की पूर्ति की कोई आशा नहीं रह जाती, आदि। हमें इस प्रकार की "आशावादिता" के बारे में किसी प्रकार के सुखद-भ्रम में नहीं रहना चाहिए। यह अवसरवाद के संबंध में आशावादिता है, यह वह आशावादिता है जो अवसरवाद को छुपाने का काम करती है। सच तो यह है कि अवसरवाद के विकास की असाधारण तीव्र गति और उसका विशेषत: घृणास्पद स्वरूप इस बात का कोई गारंटी नहीं है कि उसकी विजय स्थायी होगी स्वस्थ शरीर पर किसी घातक फोड़े की तीव्र वृद्धि का परिणाम केवल यह हो सकता है कि वह फोड़ा जल्दी फूट जाये और शरीर उसकी पीड़ा से मुक्त हो जाये। इस सिलसिले में सबसे खतरनाक वे लोग होते हैं जो इस बात को समझना नहीं चाहते कि साम्राज्यवाद के खिलाफ़ लड़ाई उस समय तक एक ढोंग और निरर्थक बात है जब तक उसका संबंध अभिन्न रूप से अवसरवाद के खिलाफ़ लड़ाई के साथ न हो।

इस पुस्तक में साम्राज्यवाद के आर्थिक सार के बारे में जो कुछ भी कहा गया है उससे यही नतीजा निकलता है कि हमें उसकी परिभाषा

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