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८.पूंजीवाद का परजीवी स्वभाव तथा उसका ह्रास

हमें अब साम्राज्यवाद के एक दूसरे बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू पर विचार करना है जिसको आम तौर पर इस विषय से संबंधित विवेचनाओं में अपर्याप्त महत्व दिया जाता है। मार्क्सवादी हिल्फ़र्डिंग की एक कमज़ोरी यह है कि वह गैर-मार्क्सवादी हाबसन की तुलना में एक क़दम पीछे की ओर चले जाते हैं। हमारा संकेत साम्राज्यवाद के उस परजीवी स्वभाव की ओर है जो उसकी एक लाक्षणिकता है।

जैसा कि हम देख चुके हैं साम्राज्यवाद की सबसे गहरी नींव इजारेदारी है। यह पूंजीवादी इजारेदारी है, अर्थात् ऐसी इजारेदारी जो पूंजीवाद में से उत्पन्न हुई है और पूंजीवाद, माल के उत्पादन तथा प्रतियोगिता के सामान्य वातावरण में रहती है और इस सामान्य वातावरण के साथ उसका स्थायी तथा अमिट विरोध रहता है। फिर भी हर इजारेदारी की तरह यह भी अनिवार्य रूप में गतिरोध तथा ह्रास की प्रवृत्ति को जन्म देती है। चूंकि इजारेदारी कीमतें स्थापित हो जाती हैं, अस्थायी रूप से ही सही, इसलिए कुछ हद तक प्राविधिक उन्नति की, और फलस्वरूप हर उन्नति की प्रेरक शक्ति खत्म हो जाती है और उसी हद तक प्राविधिक उन्नति की रफ़्तार को जान-बूझकर धीमा कर देने की आर्थिक संभावना उत्पन्न हो जाती है। उदाहरण के लिए अमरीका में ओवेन्स नामक किसी व्यक्ति ने एक ऐसी मशीन का आविष्कार किया जिससे बोतलों के उत्पादन में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आ गया। जर्मनी के बोतलें बनानेवाले कार्टेल ने प्रोवेन्स का पेटेन्ट खरीद लिया परन्तु उसे ताक में रख दिया, उसे कभी इस्तेमाल नहीं किया। इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि पूंजीवाद के अंतर्गत इजारेदारी विश्व के बाजार से प्रतियोगिता को कभी भी पूरी तरह और बहुत दीर्घकाल के लिए खत्म नहीं कर सकती (और, प्रसंगवश हम

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