पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१३८

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लम्बी नयी रेल की लाइनें ४०,००,००,००,००० मार्क से अधिक पूंजी की द्योतक हैं, यह नयी लगायी गयी पूंजी है जो विशेषतः लाभप्रद शर्तों पर लगायी गयी है और इस बात की विशेष गारंटी ले लेने के बाद लगायी गयी है कि उस पर अच्छा मुनाफ़ा होगा और इस्पात के कारखानों को लाभप्रद आर्डर दिये जायेंगे, आदि, आदि।

पूंजीवाद का विकास सबसे अधिक तेज़ी के साथ उपनिवेशों में तथा समुद्र-पार के देशों में हो रहा है। समुद्र-पार के देशों में नयी साम्राज्यवादी ताक़तें उभर रही हैं (जैसे जापान)। दुनिया की साम्राज्यवादी प्रणालियों के बीच संघर्ष उग्रतर होता जा रहा है। वित्तीय पूंजी उपनिवेशों तथा समुद्र-पार के देशों के सबसे अधिक लाभप्रद कारोबारों से जो चौथ वसूल करती है वह बढ़ती जा रही है। इस "लूट के माल" के बंटवारे में एक असाधारण रूप से बड़ा हिस्सा उन देशों को मिलता है जो उत्पादक शक्तियों के विकास की गति की दृष्टि से हमेशा सबसे आगे नहीं होते। सबसे बड़े देशों में, उनके उपनिवेशों सहित रेलवे लाइनों की कुल लम्बाई इस प्रकार थी :

(हजार किलोमीटरों में)
१८९० १९१३ बढ़ती
सं॰ रा॰ अमरीका ………… २६८ ४१३ +१४५
ब्रिटिश साम्राज्य ………… १०७ २०८ +१०१
रूस ………… ३२ ७८ +४६
जर्मनी ………… ४३ ६८ +२५
फ़्रांस ………… ४१ ६३ +२२
पांच देशों का कुल योग… ४९१ ८३० +३३९

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