पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१२३

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की मुख्य बात यह है कि पूंजीवादी इजारेदारी ने खुली प्रतियोगिता का स्थान ले लिया। खुली प्रतियोगिता पूंजीवाद की और बिकाऊ माल के उत्पादन की, आम तौर पर, मूलभूत लाक्षणिकता है ; इजारेदारी खुली प्रतियोगिता की बिल्कुल उलट है, परन्तु हम अपनी आंखों से देख चुके हैं कि खुली प्रतियोगिता इजारेदारी में रूपांतरित होती जा रही है, वह बड़े उद्योगों को जन्म दे रही है और छोटे उद्योगों को बाहर ढकेले दे रही है , बड़े पैमाने के उद्योगों के स्थान पर और भी बड़े पैमाने के उद्योग स्थापित कर रही है और उसने उत्पादन तथा पूंजी के संकेंद्रण को इस हद तक पहुंचा दिया है कि उसमें से इजारेदारी- कार्टेल, सिंडीकेट तथा ट्रस्ट पैदा हुई है और पैदा हो रही है और इनमें उसने लगभग एक दर्जन ऐसे बैंकों की पूंजी को मिला दिया है जो अरबों का हेर-फेर करते रहते हैं। इसके साथ ही इजारेदारियां, जो खुली प्रतियोगिता में से पैदा हुई हैं, इस खुली प्रतियोगिता को खत्म नहीं करतीं, बल्कि उसके ऊपर और उसके साथ कायम रहती हैं और इस प्रकार अनेक बहुत तीव्र तथा गहरे विग्रहों, संघर्षों तथा झगड़ों को जन्म देती हैं। पूंजीवाद का एक उच्चतर व्यवस्था में संक्रमण इजारेदारी है।

यदि साम्राज्यवाद की संक्षिप्ततम परिभाषा देना हो तो हम कहेंगे कि पूंजीवाद की इजारेदारी वाली अवस्था का नाम साम्राज्यवाद है। इस प्रकार की परिभाषा सबसे महत्वपूर्ण बातों को समेट लेगी, क्योंकि , एक ओर तो, जब थोड़े-से बहुत बड़े-बड़े इजारेदार बैंकों की पूंजी उद्योगपतियों के इजारेदार संघों की पूंजी के साथ मिल जाती है तो वह वित्तीय पूंजी बन जाती है ; और, दूसरी ओर, दुनिया का बंटवारा एक ऐसी औपनिवेशिक नीति से, जो अबाध रूप से उन इलाक़ों में प्रचलित रही है जिन पर किसी पूंजीवादी ताक़त का आधिपत्य नहीं था, दुनिया के इलाक़े पर , जिसका पूरी तरह बंटवारा कर लिया गया है, इजारेदार ढंग के आधिपत्य की औपनिवेशिक नीति में संक्रमण है।

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