पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/११२

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इन आंकड़ों से हम स्पष्ट रूप से देखते हैं कि उन्नीसवीं तथा बीसवीं शताब्दियों के संगम पर दुनिया का बंटवारा कितनी “पूरी तरह" हो चुका था। १८७६ के बाद औपनिवेशिक प्रदेशों के विस्तार में अत्यधिक वृद्धि हुई, पचास प्रतिशत से अधिक , छः सबसे बड़ी ताक़तों के उपनिवेशों का क्षेत्रफल ४,००,००,००० वर्ग किलोमीटर से बढ़कर ६,५०,००,००० वर्ग किलोमीटर हो गया ; यह वृद्धि २,५०,००,००० वर्ग किलोमीटर की है, अर्थात् उपनिवेशों पर आधिपत्य रखनेवाले देशों के क्षेत्रफल (१,६५,००,००० वर्ग किलोमीटर) से पचास प्रतिशत अधिक। १८७६ में तीन ताक़तें ऐसी थीं जिनके पास कोई उपनिवेश नहीं थे और चौथी के पास , फ्रांस के पास , नहीं के बराबर थे। १९१४ तक इन चार ताक़तों ने १,४१,००,००० वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के , अर्थात् यूरोप के कुल क्षेत्रफल से लगभग पचास प्रतिशत अधिक, उपनिवेशों पर कब्जा कर लिया था, जिनकी आबादी १०,००,००,००० थी। औपनिवेशिक प्रदेशों में वृद्धि की रफ्तार में बहुत अधिक असमानता है। उदाहरण के लिए, यदि हम फ्रांस, जर्मनी तथा जापान की तुलना करें, जिनमें क्षेत्रफल तथा आबादी की दृष्टि से बहुत ज्यादा अंतर नहीं है, तो हम देखेंगे कि जर्मनी तथा जापान ने मिलाकर कुल जितने औपनिवेशिक प्रदेश पर कब्जा किया है उससे लगभग तिगुने इलाक़े पर फ्रांस ने अपना आधिपत्य स्थापित किया है। जिस काल पर हम इस समय विचार कर रहे हैं उसके आरंभ में शायद वित्तीय पूंजी की मात्रा की दृष्टि से भी फ्रांस उससे कई गुना अधिक धनवान था, जितना कि जर्मनी और जापान मिलाकर थे। शुद्धतः आर्थिक परिस्थितियों के अतिरिक्त, और उनके आधार पर, भौगोलिक तथा अन्य परिस्थितियां भी औपनिवेशिक प्रदेशों के प्रकार पर प्रभाव डालती हैं। बड़े पैमाने के उद्योगों, विनिमय तथा वित्तीय पूंजी के दबाव के कारण पिछले कुछ दशकों में दुनिया में सबको समान लगभग

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