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अनुपम मिश्र


की परंपरा के बारे में पुरानी भूल चुकी बातों को तरह-तरह से इकट्ठा कर रहे हैं, पुराने नियम और क़ायदे समझ रहे हैं। इनमें से क्या दोबारा अपनाने लायक़ है, इसका परीक्षण कर रहे हैं। गोचर शब्द गाय को, गोवंश को केंद्र में रखकर बना है। लेकिन गोचर में गाय, बैल के अलावा ऊंट, भेड़ और बकरी भी चरने आ सकती हैं। प्रतिबंध यदि है तो केवल पड़ोसी गांव के पशुओं के लिए। उसका सीधा-सा कारण बस यही है कि पड़ोसी गांव को भी मेहनत कर अपना गोचर इतना अच्छा बना लेना चाहिए कि उनके पशुओं को दूसरे गोचर में जाने की ज़रूरत न पड़े। एक गांव के पशु अपने गोचर की हद से बाहर चरने के लिए दूसरे गोचर में नहीं जा सकते-इसका सबसे बड़ा उदाहरण राजस्थान के भरतपुर क्षेत्र में मिलता है। इस क्षेत्र में एक स्थान का नाम 'गोहद' है। ऐसा कहा जाता है कि यहां तक श्रीकृष्ण अपनी गायें चराने आ सकते थे। लेकिन इसके बाद उनकी हद, सीमा समाप्त हो जाती थी। हमारे गांवों ने पशुपालन का जो व्यवस्थित ढांचा खड़ा किया था, उसमें तीन लोकों के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण के लिए भी उतने ही कड़े नियम लागू किए थे, जितने कि साधारण पशुपालकों के लिए होते थे।

गोचर के उपयोग का यह व्यवस्थित ढांचा अपने गांव, पड़ोसी गांव और दूर के गांव की भी ज़रूरतों को ध्यान में रखकर बनाया गया था। बाहर के पशुओं का झुंड गांव के गोचर से गुज़र सकता था, उन पर रोक नहीं थी। लेकिन वे छोटे से गांव को, छोटे से गोचर को पूरी तरह से न उजाड़ें इसकी सावधानी रखी जाती थी। वे गोचर से गुज़र सकते थे, चर सकते थे। खेली में पानी पी सकते थे, लेकिन लंबे समय तक चरने के लिए उसी गांव के खेतों में किसान के साथ सहमति के आधार पर बैठाए जाते थे। इस बिठाई का मतलब था कि खेतों में फ़सल कटाई के बाद बचे डंठल ये पशु चर सकते हैं। खेतों में इनकी उपस्थिति से भूमि को मेंगनी, गोबर और मूत्र से क़ीमती खाद मिलती थी।

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