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अनुपम मिश्र

अभी तो आपके सामने जोशी जी ने भाषण में अंत में एक बहुत बड़ी चेतावनी दी कि यह जनतंत्र बचेगा कि नहीं। यह भी कोई तंत्र है जिसके आगे हमने 'जन' लगाया और हमने सोचा सब कुछ ठीक हो गया। इसलिए उनकी इस चेतावनी को बहुत गहराई से समझें। ये उसी 'जन' और 'लोक' शब्द से खिलवाड़ का तरीक़ा बनता चला जाएगा। मैं इसमें एक थोड़ा-सा आपके सामने रखना चाहूंगा कि जिस टैक्नोलॉजी की आज हम लोग खूब वकालत कर रहे हैं, हममें से बहुत सारे लोग भूल गए हैं कि आज का जो हमारा पढ़ा-लिखा समाज है इसकी नींव में हमारे वे अनपढ़ लोग रहे हैं, जिनको हमने दुत्कार कर अलग कर दिया। आज हम जितने लोग भी बैठे हैं हमारे परिवार से कोई एक संतान लड़का-लड़की आई.आई.टी में चला जाए इसका हमारे मन में बहुत बड़ा सपना होता है। उसके लिए किस तरह की परीक्षाएं देनी होती हैं कैसी कोचिंग क्लास वगैरह में जाते हैं ये सब आपसे छिपा नहीं है। शिक्षा का वह ढांचा अभद्र दुकानों तक में बदल गया है। लेकिन कभी हमारे सामने, हम पढ़े-लिखे, थोड़े से पढ़-लिख गए लोगों के सामने ये प्रश्न आया ही नहीं होगा कि इस देश का पहला इंजीनियरिंग कॉलेज कहां खुला? कब खुला और किसने खोला या शायद किसके कारण से खुला? ये बात कभी-कभी आज जैसा अवसर आप लोगों ने दिया ऐसा एकाध दो बार या चार बार देश में जो चार-पांच आई.आई.टी हैं, उनमें से एकाध को छोड़कर सबके सामने रखने का मुझे मौका मिला और मुझे आपको बताते हुए दुख होता है कि जिसको फैकल्टी कहते हैं, निदेशक कहते हैं वे भी इन संस्थाओं की तह तक शायद नहीं जा पाए। अपने कामों की व्यस्तता के कारण, कोई और दोष न दें। पहली तकनीकी संस्था हमारे देश में 1847 में दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता, चेन्नई जैसे किसी बड़े शहर में नहीं खोली गई थी। 1847 में सरकार भी नहीं थी-हमारे

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