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अनुपम मिश्र


है कि जैसे बुरी बातें तेज़ी से महामारी की तरह फैलती हैं, अच्छी बातें भी समाज में उसी तेजी से फैल सकती हैं। बिल्कुल एक आग की तरह फैलती हैं। तालाब वाला काम एक छोटे से हिस्से में शुरू किया था। आज उसको धड़ा-धड़ दूसरे लोग अपनाते जा रहे हैं। जिस परिस्थिति को बिगड़ने में दो सौ साल लगे, उसे सुधारने में इतना धीरज तो रखना पड़ेगा। एक-दो दिन में नहीं होगा। हम अपनी मेहनत करें, अपना कर्तव्य करें समय जो लगेगा वह तो लगेगा।

और अब आपकी पुस्तकों से जुड़ी जिज्ञासाएं:

1. 'आज भी खरे है तालाब' में ज़िक्र है 'अनपूछी ग्यारस' का, तालाब बनाने में इस दिवस का क्या विशेष औचित्य है-इस बात को थोड़ा विस्तार से समझाएं?

2. तालाब बनाने के लिए मुहूर्त, तिथियां, लग्न, ग्रह, नक्षत्र आदि का मिलना सिर्फ मान्यताओं के आधार पर होता है या इसका कोई ठोस कारण है? और अगर है तो क्या है वह?

3. जलसूंघा लोगों द्वारा भूजल की तरंगों के संकेत आम या जामुन की लकड़ी की सहायता से किस तरह से पकड़े जाते हैं? क्या हम आज तक उसका वैज्ञानिक आधार खोज पाए हैं या नहीं?

4. राजस्थान में नवरात्रि के दिनों में तालाब का जल-स्तर देखकर पुजारी जी (भोपा जी) आने वाले समय की भविष्यवाणी किस आधार पर करते थे तथा वह किस बात का संकेत होती थी और आज हमें उसे किस रूप में समझना और ग्रहण करना चाहिए?

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