पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/२०४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
पर्यावरण का पाठ


गया कि कहीं से भी चुरा लाएंगे, उधार ले लेंगे या इसको भूल जाते हैं। या जंगल का काम अच्छा कर लें पर फिर पानी का काम भूल जाएं। वह इन सब चीज़ों को एक साथ देखता था।

संस्कृति शब्द भी मेरे लिए तो नया ही है उस हिसाब से। ये बहुत हद तक-मुझे कभी-कभी डर लगता है-कि कल्चर का अनुवाद है। एक समाज का अपना एक स्वभाव होता था। कुछ उसके संस्कार भी होते थे। उसमें शिक्षा भी शामिल है, उसकी गति भी शामिल है, उसके तीज त्योहार भी शामिल हैं। यह सब किसी-न-किसी, कोई-न-कोई ढंग से उस समय के पर्यावरण को दर्ज करने के लिए, उसके साथ जुड़े रहने के लिए, उससे अलग न होने की कोशिशों के नतीजे होते थे। जैसे दीपावली केवल दीया जलाने का त्योहार नहीं है। उसको एक बड़े कथानक से जोड़ा गया। लेकिन उसके पीछे पर्यावरणीय आधार भी बहुत है। किसान समाज के लिए पुरानी फ़सल कट चुकी है। अब एक नई फ़सल की तैयारी का त्योहार है। पशुपालक समाज के लिए भी (मरुभूमि भरी पड़ी है ऐसे समाज से) यह एक त्योहार है। उस दिन के बाद से गायें खुले में चर सकती हैं। अंग्रेज़ी के पर्यावरण के ज्ञान के कारण हमारे यहां अति चराई (ओवरग्रेज़िंग) नाम का एक शब्द आया है कि यह सारा समाज जहां भी हरी घास देखता है, अपनी बकरियों और गायों को चरा देता है! इतना अव्यवस्थित समाज होता तो मर चुका होता, उसका पशु भी और उसका पशुपालक भी। उसको कब तक बांध के खिलाना है और कब खुला छोड़ना है, इसके बिल्कुल केलेंडर के हिसाब से दिन तय किए जाते थे। वर्षा के बाद ज़मीन में जो पानी पड़ा है, उससे नई पौध निकलती है, नई घास निकलती है। घास एक निश्चित उम्र तक बढ़कर अपने फल और बीज वगैरह बना लेती है। अब वो बीज झर कर गिर चुके हैं। अगले मौसम की घास को उगाने के लिए। इसलिए दीपावली के बाद गोचर में गाय भेजी जा सकती है। उससे पहले नहीं।

185