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साफ़ माथे का समाज


की जाती थी। वायक्कल मान्यम तालाब के अलावा उनसे निकली नहरों की देखभाल में खर्च होता था। पाल से लेकर नहरों तक पर पेड़ लगाए जाते थे और पूरे वर्ष भर उनकी सार-संभाल, कटाई, छंटाई आदि का काम चलता रहता था। यह सारी ज़िम्मेदारी मानल मान्यम से पूरी की जाती थी।

खुलगा मान्यम और पाटुल मान्यम मरम्मत के अलावा क्षेत्र में बनने वाले नए तालाबों की खुदाई में होने वाले ख़र्च संभालते थे।

एक तालाब से जुड़े इतने तरह के काम, इतनी सेवाएं वर्ष भर ठीक से चलती रहें-यह देखना भी एक काम था। किस काम में कितने लोगों को लगाना है, कहां से कुछ को घटाना है-यह सारा संयोजन करैमान्यम से पूरा किया जाता था। इसे कुलम वेट्टु या कंमोई वेट्टु भी कहते थे।

दक्षिण का यह छोटा और साधारण-सा वर्णन तालाब और उससे जुड़ी पूरी व्यवस्था की थाह नहीं ले सकता। यह तो अथाह है। ऐसी ही या इससे मिलती-जुलती व्यवस्थाएं सभी हिस्सों में, उत्तर में, पूरब-पश्चिम में भी रही ही होंगी। पर कुछ काम तो ग़ुलामी के उस दौर में टूटे और फिर विचित्र आज़ादी के इस दौर में फ़ूटे समाज में यह सब बिखर गया।

लेकिन गैंगजी कल्ला जैसे लोग इस टूटे-फूटे समाज में बिखर गई व्यवस्था को अपने ढंग से ठीक करने आते रहे हैं।

नाम तो था गंगाजी पर फिर न जाने कैसे वह गैंगजी हो गया। उनका नाम स्नेह, आत्मीयता के कारण बिगड़ा या घिसा होगा लेकिन उनके शहर को कुछ सौ साल से घेर कर खड़े आठ भव्य तालाब ठीक व्यवस्था के टूटे जाने के बाद धीरे-धीरे आ रही उपेक्षा के कारण घिसने, बिगड़ने लगे थे। अलग-अलग पीढ़ियों ने उन्हें अलग-अलग समय में बनाया था, पर आठ में से छह एक शृंखला में बांधे गए थे। इनका रख-रखाव भी उन

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