पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/९९

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गोलकुना के मुलतान ने १२ हजार युहनकर और १० हार पंदन सेना भेज दी। फिर भी जामह ने बीजापुर में घटकर दो लड़ाइयों लड़ी । परन्तु, उनका अच्छा फल उसे नहीं मिला। उसे मंगा नदेह और फल्टन के किले भी खाली कर देने पड़े और वह परेड़ा मे मील उत्तर-पूर्व में घूम नामक स्थान पर अकेल दिया गया। अब बीजा- पुर के किलों में से एक भी उसके अधिकार में न था। वह हवाग होकर सीधा और नाबाद लौट गया। इस प्रकार बीनापुर का यह अभियान एक प्रकार ने विकल ही हुमा, अपरिमित धन-हानि होने और इस करारी हार की सूचना पान ने औरङ्गनेव जयनिह में बहुत नाराज हो गया और उसे हुक्म दिया गया कि वह माहजादा मुअज्जम को दक्षिण की सूबेदारी के अधिकार मोपकर वहां से चला आग। अपमान में और निरागा ने भरे हुए जयसिंह ने आगरे की ओर कूत्र किया। बीजादुर के अभियान में उनका एक करोड़ मल्या प्राना दिनु बर्च हुअा था, जिसमें से एक पैना भी उने बारम नहीं मिला । अपमान और निरागा ने उनका दिल तोड़ दिया और २८ अगस्त, १६६३ को बुर- हानपुर में वह मर गया। सच यूछा जाय तो उपनिह को पूर्ण युद्धकौगल काम में लेने का अवसर ही नहीं मिला था। उसके पाम मैना अनुपयुन हवं अपर्याप्त थी और बुद्ध व दाद्य-नानत्री भी बहुत कन श्री । घेरा डालने के योग्य एक भी तो उसके पान न थी। घरेलू सैनिक विद्रोह ने वीजापुर महाराज्य की कमर तोड़ दी थी। राजकीय सत्ता के निर्बल हो जाने पर नारा राज्य सैनिक जागीरों में बँट गया था और महत्वपूर्ण पदों और अधिकारपूर्ण कार्यों को लालची सेनापतियों ने आपस में बाँट लिया था, जिससे राज्य की सारी सत्ता इनके हाथ में थी। ये सैनिक चार विभिन्न जाति के थे। एक अफगान थे-जिनकी जागीरें पश्चिम में कोंकरण से लेकर नेकापुर तक स० च०७