प्रारको मति है। मेरा मस्तक अापके चरणों में नत है। परन्तु यदि भाप उम पिन-भ्रातृ घाती, हिन्दु विद्वेशी औरंगजेब के सेवक हैं तो महा- गन, मुझे बताइए आपके माय कैसा व्यवहार करूं। यदि तलवार उठाता है तो दोनों ओर हिन्दु रन गिरता है। आप मुझ दाम से युद्ध करके भले ही हिन्दू रत पृथ्वी पर गिराएं, पर मुझमे यह नहीं हो " है महाराजा के महाराज, यदि आपकी तलवार में पानी है श्रीर आपके घोड़े में दम है, तो मेरे साथ कन्या भिलाकर देश और धर्म के मनु का विध्वंस कीजिए और रामचन्द्र के देव वंश को उज्ज्वल नजिर ! आने वाली वीडियो आपका वरद बखान करेंगी।" महाराज जयसिंह विचलित हुए । शिवाजी के वीर वचनों से वे आन्दोदित हो बड़ी देर तक चुप बैठे रहे । कहीं उनकी अखों की कोर में एक दू भाया । उन्होंने कुछ ठहरकर कहा-"राजन, शिवानी, राजे, मेरी बात सुनिए, मैं आपके पिता की आयु का हूँ। युक्ति, युगधर्म और गजनीति का बुद्धिमानी ने पालन कीजिए । इसी में भलाई है।" "लो महाराज, मैं आपको मिला के समान समझता हूँ। आप अपने इस पुल के सिर पर हाथ रखकर जो आदेश देंगे, वही मैं "ऐसा ही होना चाहिए राजन् ! मेरे वचन पर विश्वास कीजिए । मैं जो कहूँगा, वह पालन करूंगा। औरङ्गजेब आपके विद्रोह को क्षमा कर देगा। और आपको सम्मानित करेगा। आप उसकी आधीनता स्वीकार कर लीजिए।" शिवाजी गाल पर हाथ धर के गहरे सोच में डूब गए । महाराज उनिह ने कहा- "राजेन्द्र, मैं भी नव समझता हूँ। मेरी सामर्थ्य भी कम नहीं है और सब राजन राजे भी मुझसे बाहर नहीं हैं। परन्नु. क्रिोड के लिए विद्रोह दो राजनीति नहीं है। युद्ध-विग्रह इसलिए होते हैं कि हनुन निर्दय हों और ये सब बातें शौर्य पर निर्भर नहीं होती।
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