दूसरे दिन सूर्यास्त होते-होते किले पर उनका अधिकार हो गया। अब दिनां को पुरन्दर पर आक्रमण करने की आज्ञा देकर अलिह ने में के दल मराठा प्रदेश में लूटमार के लिए रवाना किः । दिलेरखां वचगढ़ को पुरन्दर में जोड़ने वाली पर्वन-वे के महान नहारे पुरन्दर की ओर बड़ा, और माची को झा बेरा । नया किले के उनर-पूर्वी मिरे पर खड़ाला बुर्ज की और उसने खइयाँ खुदवानी कारन्न नौं । निरन्तर नानान बाई के बाद सुगनों ने मानी के पात्र कुर्न अधिकृत कर लिए। अत्र पुरन्दर का किला उनके सामने था। मुलह की बातचीत पुरन्दर का शिलेदार मुरारजी बाजीप्रभु एक वीर पुरुष था । उसके पास केवल नात नौ चुने हुए मादले थे। इस समय दिरवां पांच हजार पठानों और अन्य जातियों के सैनिकों को लेकर चारों ओर से पहाड़ी पर चढ़ने का यत्न कर रहा था । मुरारजी बाजीप्रभु ने बड़ी वीरता से किले की रक्षा की और ५०० पटानों को मार गिराया। अन्न में वह बात नौ वीरों को माथ लेकर मार-काट करता हुग्रा किले से बाहर निकला। उसको वीरता और माइम को देखकर दिलेरखा ने उसे सन्देश भेजा कि यदि वह आत्मसमर्पण कर देगा नो वह उन मानी आधता में एक ऊँचा पद देगा। परन्तु उनने अस्वीकार कर दिया और बहने-लड़ते युद्धभूमि में जून मरा । उनके बहुत से साधी नी उसके माय मरे, और जो वो वे किले में लौट आए। इस समय पुरन्दर के कि में नराका अधिकारियों के बहु ने कुटुम्ब आश्रय लिए वैठे थे। अब शिवानी को यह भय अन्धित हुआ कि पुरन्दर का पतन होने पर ८७
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