पुरन्दर को चढ़ाई ३१ मार्च को वह आगे बढ़कर पुरन्दर की ओर चला और पुरन्दर मे चार मील दूर पुरन्दर और सासबढ़ के बीच अपना पड़ाव डाला और पुरन्दर के किले को घेर लिया। सासवड़ से ६ मील दक्षिण में पुरन्दर का विशाल पर्वत सीधा खड़ा था। उसकी सबसे ऊंची चोटी आस-पास के समतल मैदान से कोई २५०० फुट से भी अधिक ऊँची तथा कुल मिलाकर समुद्र की सतह से ४५६४ फुट ऊंची थी । वास्तव में यह एक नैसर्गिक दुहरा किला था। इसके पूर्व में विलकुल सटी हुई एक पहाड़ी पर वज्रगड़ नाम का एक दूसरा सुदृढ़ किला था। पुरन्दर का किला जिम पहाड़ी पर बना हुआ था, वह चारों ओर से बहुत ही ऊंची चट्टानों से निर्मित थी । इससे कोई ३०० फुट नीचे एक और परतोटा था, जो माची कहलाता था । पुरन्दर के जारी किले की उत्तर- पूर्वी मीमा खड़कला बुर्ज के तल प्रारम्भ होकर भैरव-खण्ड नामक एक ऊंची पहाड़ी पूर्व में एक संकरी पर्वत-श्रकी के रूप में कोई एक मील तक चली गई थी, जिसने दूसरे सिरे पर समुद्र से ३६१८ फुट ऊंचे एक छोटे से पठार का रूप धारण कर लिया था। यहीं पर वज्रगढ़ नाम का किला था। माची के उत्तरी भाग में सैनिकों के रहने के स्थान थे और वज्रगढ़ का शिला माची के बिलकुल ऊपर था । जयसिंह ने एक अनुभवी सेनानायक की भांति पहले वज्रगड़ पर आक्रमण किया और लगातार गोलाबारी करके सामने की बुर्ज के नीचे की दीवार को तोड़ डाला और बुर्ज पर धावा करके मराठों को किले के पीछे की ओर धकेल दिया और ऐसी जोर की गोलावारी की कि
पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/८८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।