। अंग्रहों की फैक्टरी के पास हाजी मंत्रदोग नामक एप्रनी व्यापारी की गगनचुम्यो अट्टालिका थी। उसके बड़े-बड़े मालगोदाम भी थे जिनगी कतारें दूर तक चली गई थीं । अपनी इस मारो मनमनि को अरभित छोड़कर वह व्यापारी भाग कर किले में जिस गया । मगरे घरों में, फैक्टरियों में, गोवानों में घुम-चुन कर कहाँ के दरवाजों र तित्रो- रियों को नोड़-तोड़ कर नकद काया, कपड़े और अन्य देर मार्ग माननी उठा-उठाकर निरन्तर चार दिनों तक जाते रहे। केवल अंग्रेजों ने इन लुटेरे मराठों पर अन्नान किया। सूरत के इस सपनो ने मन्त्रि- चत्र के वनाने अपने एक अनुचर को भिवानी के पास भेज कर उन्हें मार डालो का पड्यन्त्र रचा। परन्तु वह अनुचर जुन्न मार डाला गया । इन प्रकार मनृद्ध मरत को चार दिन न निदगंक लुटपाट कर जब निवानी ने मुना कि नगर-रक्षा के लिए सेना का रही ई-वे वहां से चल पड़े । कुल मिलाकर एक करोड़ रु चा मरत श्री लूटने उनके हात्र लगा। परन्तु लोड कर उन्होंने मुना कि साहनी का स्वर्गवान होण्या है । शिवाजी के यम ने यद्यपि शाहजी के वश को ढक दिया था, परन्तु शाहजी वास्तव में असाधारण व्यक्ति थे। शाहनी से पहले दक्षिण में हिन्दू रईम मुसलमान शासकों के सहायक समझे जाते थे। दक्षिण में उनकी कोई स्वाधीन मना नहीं थी। बीजापुर या गोदकुन्डा की माहियों में यदि किसी हिन्दू रईम को पांचनारी का मनसब मिल जाता था तो उसका जीवन धन्य माना जाता था। पर शाहजी ने एक नई शान पैदा की थी। वे बड़े-से-बड़े मुसलमान सरदार से टक्कर लेने लगे थे। शाह को गद्दी पर बैटाने और उतारने वालों में उनका नाम आगया था वास्तव में वे दमिना के भाग्य-निर्माता बन गए थे। हकीकत यह थी कि शाहजी ने ही शिवाजी के लिए राजनैतिक नेतृत्व करके उनके लिए स्वाधीनता का मार्ग साफ किया था ।
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