करके उस पर अधिकार कर लिया है नया पचास हजार हुन दण्ड भी लिया-यह भी आप ही के चरमों में अर्पण है । स्वीकार कीजिए।" "पुत्र, तुमने मेरा कुल उज्ज्वल किया।" उन्होंने पुत्र को फिर आलिंगन किया और सभा विसर्जित हुई। जीजाबाई ने १६ वर्ष बाद पति दर्शन किए थे-उसके नेत्रों से आंम् वह रहे थे। शाइस्ताखाँ से टकर औरङ्गजेब को दक्षिण से सूचना मिली-'वीजापुर में एक आदमी ने विद्रोह करके कई किलों और वन्दरगाहों पर, जो बीजापुर दरबार के आधीन थे, कब्जा कर लिया है। उसका नाम निवासी है। वह चतुर और साहसी है। उसे मरने-जीने की परवाह नहीं है । प्रसिद्ध है कि उसमें कुछ गैबी हवाई ताकत है। उसने अफजलखां को मार डाला है। वह वीजापुर के शाह से भी बढ़ गया है और अब शाही इलाकों में लूटमार करके वदअमनी फैला रहा है।' औरंगजेब को निरन्तर फिर ऐसी ही सूचनाएं मिलती रहीं। तव शिवाजी की तूफानी हलचलों से घबराकर औरंगजेब ने अपने मामू शाइस्ताखां को दक्षिण का सूबेदार बनाकर भेजा। दक्षिण आते ही उसने वीजापुर शाह से मिलकर यह आयोजन किया कि वह स्वयं उत्तर की ओर से और वीजापुरी सेना दक्षिणकी ओर से शिवाजी पर आक्रमण करे । २५ फरवरी, १६६० को एक बड़ी सेना के साथ वह अहमदनगर से रवाना हुआ और ६ मई को पूना पहुँचा। इसके बाद पूना से चलकर वह चाकरण के किले में गया और उस पर अपना अधिकार जमा लिया। परन्तु इस पहली ही मुठभेड़ में उसे बहुत हानि उठानी पड़ी। वह पूना बौट गया। वर्षा ऋतु उसने वहीं व्यतीत की। वर्षा की समाप्ति पर ७७
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