महाभारत-संग्राम के वाद, पहले ही सेनापति थे । उस काल में उनके सेनापनित्व के चातुर्य का दो और वीर पुरुषों ने अनुसरण किया था एक मेवाड़ के राणा राजा राजसिंह, दूसरे बुन्देले छत्रसाल । मुगल तख्त का दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि इन तीनों ही विलक्षण पंडितों ने आगे एक साथ ही औरङ्गजेब से टक्कर ली और आखिरकार मुगल तख्त की पाताल तक जमी हुई नींव को उखाड़ फेंका । २८ पन्हाला दुर्ग का घेरा दस नवम्बर, १६६६ को अफजलखां मारा गया। अफजलखाँ के मरने और उसकी सेना के संहार द्वारा प्राप्त विजय से उन्मत्त मराठे अव दक्षिणी कोंकरण और कोल्हापुर के जिलों में जा घुसे। शिवाजी ने उन्हें बीजापुर प्रान्त को लूटने और नष्ट-भ्रष्ट करने की खुली आज्ञा दे दी। मराठों ने पन्हाला के प्रसिद्ध दुर्ग पर कब्जा कर लिया तथा बीजापुरी सेना को खदेड़ते हुए और दुर्ग-पर-दुर्ग अधिकार में करते हुए शिवाजी की वह सेना वीजापुर की ओर बढ़ने लगी । उसने बीजापुर के प्रसिद्ध सेनापति रुस्तमे जमान को, जो कोल्हापुर के बचाव के लिए आया था, पामाल करके कृष्णा नदी के उस पार धकेल दिया। अब वह राजापुर पहुंची और वहाँ से भेंट-कर लेकर विजय-पर-विजय प्राप्त करती हुई, नगरों व ग्रामों से असंख्य धन लूट और भेट में वसूल करती हुई वीजापुर की सीमाओं तक पहुँच गई । इस समय वीजापुर में अफ- जलखां का मातम छाया हुआ था। जव वहाँ शिवाजी के धंसे चले आने की सूचना पहुंची तो अली आदिलशाह और बड़ी साहिबा ने हब्शी गुलाम सिद्दी जौहर को, जो सलावतखाँ के नाम से प्रसिद्ध था, १५००० सवार देकर रवाना किया। उसके साथ अफजलखां का पुत्र फजलखाँ था जो अपने वाप का बदला चुकाने के लिए खार खाए बैठा था। ७२
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