कृष्णजी भास्कर । और आप हैं राजा शाहजी के पुत्र पूना के जागीर- दार।" “यदि मेरी जागीर छिन जाय और आप कुलकर्णी या दीवान न रहें तो ?" "तो मैं कृष्ण भास्कर ब्राह्मण और पाप शिवाजी क्षत्रिय ।" "ठीक कहा आपने । तो ब्राह्मण देवता, ब्राह्मण सदा से क्षत्रियों को सदुपदेश देते आए हैं। आप भी मुझे कुछ सदुपदेश दीजिए । इसीलिए आया हूँ। आपका शिष्य हूँ।" "वाह, यह आप क्या कहते हैं।" "खैर आप कहिए, आज गो-ब्राह्मण की क्या दशा है ?" "दोनों संकट में हैं।" "इस संकट से उनका उद्धार कैसे होगा ?" "आप जैसे पुरुष सिंह ही उनका उद्धार कर सकते हैं।" "मैं ही पुरुष सिंह क्यों ? इस आदिलशाही में तो ४० हजार हूणों के जागीरदार बहुत हैं।" "सो तो है ही । पर आप जैसा साहस किस में है !" "आपने क्या मेरा केवल साहस ही देखा ?" "नहीं, कौशल भी, सद्भावना भी, पवित्रता भी।" "बस ?" "और भी, आप में इन बातों की परख की सामर्थ्य भी है, इसी से आपका कोई साथी आपको धोखा नहीं देता। और इसी कारण से आपने जो इतने अल्प काल में इतनी विजय की हैं, किसी दूसरे ने नहीं की।" "परन्तु वीजापुर दरबार में दम होता तो क्या मैं सफलता प्राप्त था?" ५८
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