उन्होंने युवक से कहा-"तुम्हारे घर पर कौन है ?" "वृद्धा विधवा माता।" "गांव कौन है ?" "मौरावां।" 44 "आठ कोस होगा।" "तुम्हारा नाम ?" "तानाजी ।" "घोड़े पर चढ़ सकोगे ?" "जी।" महाराज और धांवूजी ने युवक को घोड़े पर लादा। घांघूजी उनके पीछे बैठे, और महाराज भी अपने घोड़े पर सवार हुए। इस बार ये यात्री अपना पथ छोड़कर युवक के आदेशानुसार गांव की ओर बढ़े, पगडंडी संकरी और बहुत खराव थी। जगह-जगह पानी भरा था, पर जानवर सधे हुए और बहुत असील थे। धीरे-धीरे गांव निकट आ गया। युवक के बताए मकान के द्वार पर जाकर घांघूजी ने थपकी दी। एक युवक ने आकर द्वार खोला । धांघूजी ने उसकी सहायता से तानाजी को उतार कर घर में पहुंचाया। संक्षेप में दुर्घटना का हाल मुनकर गृहपति युवक मर्माहत हुआ। धांघूजी ने अवकाश न देखकर कहा- "तुम लोग परसों इसी समय हमारे यहां आने की प्रतीक्षा करना और घटना का कहीं भी जिक्र न करना।" तानाजी ने व्यग्र होकर कहा-“महोदय, आपका परिचय ? मैं किसके प्रति कृतज्ञ होऊ ?" "छत्रपति हिंदू-कुल-सूर्य महाराजाधिराज शिवाजी के प्रति ।" घांघूजी ने अव विलम्ब न किया, वह लपककर घोड़े पर चढ़े, और दोनों असाधारण सवार उस अंधकार में विलीन हो गए। . ४
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