सीमा को छोड़ पश्चिमी सीमा पर आगे बढ़ा और उसने पंढरपुर के आगे भीमा नदी को पार किया। उसने पंढरपुर के मन्दिर को भ्रष्ट किया, पुण्डलीक की मूर्ति को नदी में फेंक दिया और वाई की ओर बढ़ा । वहाँ पहुँचकर उसने शिवाजी के लिए एक लोहे का पिंजरा बनवाया। उसने दर्प मे घोपरणा की कि इसी पिंजरे में बन्द कर वह उस पहाड़ी चूहे को बीजापुर ले जायगा । अफजलखां चाहता था कि या तो शिवाजी को सोते हुए किसी किले में घेर लिया जाय, या मन्दिरों को तोड़-फोड़ कर उसे इतना उत्ते- जित कर दिया जाय कि वह पहाड़ी इलाके को छोड़कर मैदान में उतर पाए । उसे भरोसा था कि मैदान में वह मराठों को गाजर-मूली की भाँति काट डालेगा। परन्तु शिवाजी का प्रवन्ध ऐसा था कि बीजापुर में पत्ता हिलता था तो शिवाजी के कान में आवाज आ जाती थी। जव अफजल ने देखा कि शिवाजी को न तो किसी किले में पकड़ा जा सकता है, न पहाड़ी इलाके से वाहर ले जाया जा सकता है, तो उसने उसे धोखे-से मार डालने या पकड़ने की योजना बनाई। मराठे सरदार घबरा रहे थे। अभी तक उन्होंने मुसलमानों के साथ सन्मुख युद्ध नहीं किया था। केवल छोटे-छोटे किलों पर ही आक्रमण किए थे । अफजलखाँ मशहूर सेनापति था । उसकी सेना सुगठित थी। शिवाजी के सरदारों के दिल दहल रहे थे । और शिवाजी के माथे पर चिन्ता की रेखाएँ उभर रही थीं। शिवाजी का गुप्तचर विश्वासराव इस समय छद्म वेश में अफजल की सेना में था । वह क्षण-क्षण पर सूचनाएँ भेज रहा था। बाई पहुंच कर अफजलखां ने एक पत्र देकर कृष्णजी भास्कर को दूत बनाकर शिवाजी के पास भेजा। पत्र में लिखा था- "तुम्हारा बाप मेरा दोस्त है । तुम भी मेरे लिए अजनबी नहीं। बस, बेहतर है ५६
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