। बीजापुर के साथ भी मुगलों का संघर्ष रहा । परन्तु विशेप लाम न हुआ। शाहजहां ने जब बीजापुर का मर्दन करने के लिए स्वयं दक्षिण की यात्रा की, तब कहीं उसे यत्किचित् सफलता मिली। २१ औरंगजेब और शिवाजी औरंगजेब एक बड़े ही विचित्र चरित्र का पुरुष था। उसके गुण और दोष महान थे। औरंगजेब का ब्यक्तित्व इस्लाम के इतिहास पर अपना सिक्का छोड़ गया है । वह देखने में मुन्दर न था, लेकिन शरीर उसका गठीला था, युद्ध और व्यायाम का उसे गौक था । पढ़ने-लिखने में उसकी विशेष रुचि न थी, लेकिन बुद्धि उसकी खूब प्रखर थी। परवी और फारसी बोलने में वह बड़ा दक्ष था । हिन्दी और तुर्की भी वह जानता था । परन्तु उसकी विशेष अभिरुचि इस्लाम के मजहबी माहित्य की ओर थी । कुरान और हबीस उसे कण्ठाग्र थे । ललित कलाओं से उसे घृणा थी। मंगीत और चित्रकारी को वह कुक कहता था । वह एक निडर और माहमी पुरुष था । परिस्थितियों ने उसकी निडरता व साहस को और भी बढ़ा दिया था । वह कट्टर मुसलमान था । उसकी कट्टरता दिन पर दिन बढ़ती ही गई । अन्त में यह कट्टरता उस पर इतनी छा गई कि उसके सब गुग दोष उसमे ढक गा । उसने मुस्लिम धर्मानुगासन को अक्षरमा क्रियात्मक रूप देने की चेष्टा की। निःसन्देह वह रेगमी गद्दों और संगमरमर के फों पर खेला था, पन्नु दक्षिण के कठोर और कटीले मार्ग पर वह बड़ा हुआ । उमे कंधार की बर्फीली व दुर्गम घाटियों में अपना रास्ता निकालना पड़ा और कदम-कदम पर उसे अपने पैरों पर खड़े होने का अभ्यासी होना पड़ा । जब शासन की गहरी समस्याओं की आग में उसकी प्रतिभा को तपना पड़ा तो वह और उज्ज्वल हो उठी । निरन्तर युद्धों में फंसे रहने के कारण उसका साहस प्रचण्ड हो उठा । उसने बुन्देलखण्ड, दक्षिण, गुजरात, मुलतान, सिन्ध, बल्ख,
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