तानाजी ने विचलिन होकर कहा-"तुम चाहते क्या हो?" "यवन-सेना वहाँ प्रातःकाल पहुंचेगी।" "अच्छा फिर ?" "मैं एक मार्ग जानता है, जिसमे मैं पहर रात्रि गए वहाँ पहुँच सकता है। श्रीमान्, मुझे केवल पचाम सवार दीजिए । मैं गाँव वालों को मिला लूंगा, और घाटी का द्वार रोक लूंगा। यवन-दल रक्षा की धारणा से तुरन्त घाटी में प्रवेश करेगा। पीछे से आप घाटी के मुख को रोक लीजिए । शत्रु चूहेदानी में मूसे के समान फंम जायगा।" तानाजी गम्भीरतापूर्वक सोचने लगे। अन्त में उन्होंने कहा- "मैं तुम्हारी तजवीज पसन्द करता हूँ। पचास सैनिक चुन लो।" सिपाही ने पचास सैनिक चुनकर चुपचाप खेत की पगडंडी का रास्ता लिया। तानाजी ने यवन-दल पर फिर आक्रमण करने की तैयारी की। किश्त-मात स्तब्ध रात्रि के सन्नाटे को चीरकर तुरही का शब्द हुआ । सोए हुए ग्रामवासी हड़वड़ाकर उठ बैठे। देखा, ग्राम के बाहर थोड़े से घुड़सवार खड़े हैं। गाँव के पटेल ने भयभीत होकर पूछा-"तुम लोग कौन हो, और क्या चाहते हो ?" सैनिकों ने चिल्लाकर कहा-"हिन्दू-धर्म-रक्षक छत्रपति महा- राज शिवाजी की जय।" गाँव के निवासी भी चिल्ला उठे-"जय, महाराज शिवाजी की जय।" ३५
पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/३७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।