"बहुत ठीक, बीजापुर माह का खजाना कल्याण से बरार जा रहा है । वह अवश्य वहाँ न पहुँचकर यहां आना चाहिए । परन्तु उसके साथ पांच हजार चुने हुए सवार हैं। तुम अभी पांच सौ सैनिक लेकर उन पर धावा बोल दो।" "जो आज्ञा ।" "परन्तु युद्ध न करना, जैसे बने, उन्हें आगे बढ़ने में बाधा देना।" "जो आज्ञा ।' "मैं प्रभात होते-होते समस्त पैदल सेना महित नुममे मिल जाऊँगा।" "जो आज्ञा ।" तानाजी ने तत्काल कूच कर दिया । १४ नया पैतरा दुपहरी की तीव्र सूर्य-किरणों में धूल उड़ती देख यवन-मैनिक सजग हो गए। उनके सरदार ने ललकार कर व्यूह-रचना की, और खच्चरों को खास इन्तजाम में रखकर मोर्चेबन्दी पर डट गए । कूच रोक दिया गया । तानाजी धुआंधार बढ़े चले आ रहे थे । दोपहर होते-होते उन्होंने खजाना धर दबाया था। उन्होंने देखा, यवन-दल कूच रोककर, मोर्चा वाँधकर युद्ध-सन्नद्ध हो गया है । तानाजी ने भी आक्रमरण रोककर वहीं मोर्चा डाल दिया । यवन-दल ने देखा-शत्रु जो धावा बोलता हुआ पीछा कर रहा था, आक्रमण न करके वहीं मोर्चा बांधकर रुक गया है। इसके क्या माने ? यवन-सेनापति ने स्वयं आक्रमण कर दिया । यवन-सेना को लौटकर धावा करते देख तानाजी ने शीघ्रता से स.च.३ ३३
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