में प्रथम-मिलन हुआ था। शिवाजी ने इस युवक को धीर, वीर और काम का आदमी समझकर उसे शस्त्रास्त्र की सर्वोच्च शिक्षा देने प्रसिद्ध हरिनाथ स्वामी का अन्तर्वासी बनाया था, जो सह्याद्रि शैल पर एकान्त- वास कर रहे थे। हरिनाथ स्वामी शस्त्र विद्या के प्रकाण्ड प्राचार्य थे और शिवाजी ने उनसे वाल्यकाल में प्रेरणा पाई थी। तानाजी मलूसरे कोंकरण प्रान्त के निवासी थे जहाँ शिवाजी ने प्रारम्भिक विजय प्राप्त की थी। इस समय तीन तरुण सरदार शिवाजी के उत्थान में सहायक थे-एक तानाजी मलूसरे, दूसरे पेशाजी कंक और तीसरे वाजीप्रभु पारुलकर । ये तीनों तरुण शिवाजी के समवयस्क तो ये ही, महाराष्ट्र की स्वतन्त्रता की आग भी इनके हृदय में शिवाजी से कम नहीं थी । इसके अतिरिक्त वे बड़े बाँके वीर, कर्मठ राजपुरुष और दुर्दम्य साहसी पुरुष थे। इन्हीं तीन सहायक मित्रों को लेकर शिवाजी ने अपनी विजय-यात्रा प्रारम्भ की थी, शिवाजी की माता जीजाबाई भी इन्हें शिवाजी के समान ही पुत्रवत् प्यार करती थीं। वे निरन्तर उन्हें शौर्य प्रदर्शन के लिए उकसाती रहती थीं और शिवाजी ने इन्हीं लोगों के बल- बूते पर दक्षिण के इस्लामी राज्य और मुगल राज्य को उखाड़ फेंकने का बीड़ा उठाया था। प्रारम्भिक युद्धों में तानाजी मलूसरे का प्रमुख हाथ रहा, और धीरे-धीरे मराठा सेना में उनका नाम प्रेम और आदर से लिया जाने लगा। तानाजी मलूसरे के प्राणों की रक्षा शिवाजी ने की थी, इसलिए तानाजी ने अपने प्रारण उन पर न्यौछावर कर देने की शपय ली थी। इसके अतिरिक्त उनकी प्रिय बहन का अपहरण भी ऐसी घटना थी कि जिसके कारण उनका मन प्रतिहिंसा की ज्वाला में धधक रहा था । परन्तु हरिनाथ स्वामी ने उनके मन का वह कलुष धो डाला था और उन्हें शिक्षा दी थी कि यह केवल तुम्हारा व्यक्तिगत मामला ही नहीं है, तुम्हारी हजारों वहनों का इसी प्रकार अपहरण हुआ है। इसलिए इसे कोरा व्यक्तिगत २५
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