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५७ गढ़ आया, पर सिंह गया शुभ मुहूर्त में छत्रपति महाराज ने सिंहगढ़ में प्रवेश किया । प्राङ्गण में विषण्ण-वदन सैनिक नीची गर्दन किए खड़े थे । घोड़े से उतरते हुए शिवाजी ने कहा-"मेरा मित्र तानाजी कहाँ है ?" एक अधिकारी ने गम्भीर मुद्रा से कहा--"वह वीर वहाँ वरामदे में श्रीमान् की अभ्यर्थना को बैठे हैं।" अधिकारी रोता हुआ पीछे हट गया । महाराज ने पैदल आगे बढ़कर देखा। वह निश्चल मूत्ति सैकड़ों घाव छाती और शरीर पर खाकर वीरासन से विराजमान थी। महाराज की आँखों से टपाटप आँसू गिरने लगे। उन्होंने शोक-कम्पित स्वर में कहा-“गढ़ आया, पर सिंह गया।"