की प्रार्थना पर जीजाबाई के गर्भ से मुगलों का सर्वनाश करने को उन्होंने अवतार लिया है। वे गौ-ब्राह्मण के रक्षक हैं। अन्तिम चरण गाया-“जे जे मोगलाँच चाकर थूरे थूमचा जिनगी बर।" गाने के मधुर स्वर और हृदयग्राही भाव सुनकर रावजी मुग्ध हो गए और तानाजी को अंक में भर कर कहा-"मांग, क्या मांगता है।" तब एकान्त में ताना ने अपना परिचय देकर रावजी से कोलियों- कुम्हारों की सहायता मिलने का वचन लिया । कृतकृत्य होकर तानाजी अपनी छावनी में लौट आए। तीज का चन्द्रमा उदय हुआ। उसकी क्षीण चाँदनी पर्वतों पर फैल गई। आकाश में असंख्य नक्षत्र उदित थे। तानाजी छावनी के एकान्त भाग में खड़े हुए अजेय सिंहगढ़ की ओर ध्यान से देख रहे थे। उन्होंने अकस्मात् देखा--एक मनुष्य मूर्ति किले से निकल कर धीरे-धीरे पहाड़ से नीचे उतर रही है। तानाजी ने अपनी कमर में लटकती तलवार को भलीभांति परखा और चुपचाप उस ओर को चल दिए जिधर वह मनुष्य आ रहा था। निकट पहुँच एक झाड़ी में छिप गए और अवसर पाकर तलवार उसके कण्ठ पर रखकर कहा-"सच कह, तू कौन है ?" वह पुरुष प्रथम तो तनिक घबराया। फिर उसने कहा-"मैं राजपूत हूँ, मेरा नाम जगतसिंह है। आप कौन हैं जो अकारण ही शत्रुवत् व्यवहार कर रहे हैं ?" "मैं जानना चाहता हूँ कि तुम शत्रु हो या मित्र ।": "यदि आप इस किले के निवासी हैं तो मैं आपका शत्रु हूँ।' यदि नहीं हैं तो मित्र हूँ।" "जब किले वाले तुम्हारे शत्रु हैं तब तुम किले में क्यों गए थे ?" "यह बात मैं केवल मित्र को बता सकता हूँ।" १४६
पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१५१
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।