पूर्ण स्थानों में जनता के सदाचार की देखभाल करने के लिए मोहतसिव नियुक्त किए जिनका वास्तविक काम था हिन्दुओं के तीर्थों का विध्वंस करना । उसने हिन्दुओं पर जजिया लगाया; स्त्रियों, चौदह वर्ष के बच्चों और गुलामों को ही इससे छूट मिलती थी । धनवान, लंगड़ों, अंधों, पागलों और महन्तों को भी यह कर देना पड़ता था। एक बार दिल्ली और उसके आसपास के रहने वालों ने इस कर का विरोध भी किया। उन्होंने बड़ी करुणाजनक प्रार्थनाएं भी कीं परन्तु कोई सुनवाई नहीं हुई। इस कर से बहुत बड़ी रकम शाही खजाने में जाती थी। इससे बचने के लिए बहुत से हिन्दू मुसलमान हो गए। इसके अतिरिक्त हिन्दुओं से विक्री कर लिया जाता था और मुसलमानों से नहीं। मुसलमान होने पर उन्हें ऊंचे पद, जायदाद व दूसरे प्रलोभन दिए जाते थे । उसने अपने सब शासकों और ताल्लुकेदारों को आज्ञा दी थी कि अपने हिन्दू पेशकारों को निकाल कर मुसलमानों को भर्ती करें। उसने हिन्दुओं के मेलों को भी रोक दिया और त्यौहारों पर भी रोक-टोक लगाई। Mies ५२ जजिया शिवाजी के आगरे से निकल भागने से क्रुद्ध होकर औरंगजेब ने सब हिन्दुओं पर जजिया का कर लगा दिया । इस समाचार से सारे हिन्दुओं में हलचल मच गई । हिन्दू सामूहिक रूप से अपनी फरियाद लेकर बादशाह की सेवा में पहुँचे । बादशाह हाथी पर सवार हो जुमे की नमाज़ पढ़ने को जुम्मा मस्जिद की ओर रवाना हुआ तो लाखों हिन्दू राह पर लोट गए । उन्होंने रो-धोकर अपनी फरियाद बादशाह से अर्ज की पर औरंगजेब यों पसीजने वाला आदमी न था। उसने हाथी आगे बढ़ाने का हुक्म दिया और हाथी नर-नारियों को कुचलता हुआ आगे १४१
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