आज्ञाओं का भी पालन नहीं करता था, जिससे औरङ्गजेब अत्यन्त चिन्तित और शंकित हो गया था। मुगल दरबार आगरे में यह आम बात थी कि मुअज्जम शिवाजी से मिलकर बादशाह को तख्त से उतारने की साठ-गांठ में है। इसी से शेर होकर शिवाजी के मुगल प्रदेशों पर आक्रमण सफल होते जा रहे हैं और शाहजादा मुअज्जम चुपचाप बैठा देख रहा है। इधर दिलेरखाँ ने जव अपनी स्थिति को असहनीय देखा और अपने मार डाले जाने या कैद किए जाने का उसे अंदेशा हो गया तो उसने दक्षिण से भाग चलने में ही अपनी कुशल समझी। उसने गुजरात के सूबेदार बहादुरखाँ से एक खत बादशाह को लिखवाया जिसमें यह सिफारिश की गई थी कि दिलेरखाँ को उसकी अधीनता में काठियावाड़ का फौजदार नियुक्त किया जाय । वादशाह ने यह प्रस्ताव स्वीकार किया और दिलेरखाँ ने दक्षिण से कूच कर दिया। सितम्बर सन् १६७० के अन्त में दिलेरखाँ ने दक्षिण छोड़ा और इसके तत्काल बाद २०,००० घुड़सवार और इतने ही पैदलों को लेकर शिवाजी ने सूरत को जा घेरा । अब यह वह लुटेरा शिवाजी न था जो पहले चोर की तरह आया था और लूटमार करके भाग गया था। अब उसकी कमान में ३०,००० मराठों की अजेय सेना थी और वह शाहजादे की छाती पर पैर रखकर सूरत पहुंचा था। ३ अक्तूबर को शिवाजी ने नगर पर धावा बोल दिया। शिवाजी के सूरत पर पहले धावे से सचेत होकर औरङ्गजेब ने शहर के चारों ओर शहरपनाह बना दी थी। परन्तु इससे कुछ लाभ न हुआ। नगररक्षक थोड़ी देर तक ही रक्षा कर सके अंत में वे किले की ओर भाग चले । शिवाजी ने आनन-फानन शहर को अपने अधिकार में कर लिया। केवल अंग्रेज, डच व फ्रांसीसी व्यापारियों की कोठियाँ, तुर्की व ईरानी व्यापारियों की बड़ी नई सराय और अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों कोठी के में स्थित तातार सराय जिसमें मक्का , १३४,
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