पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/११९

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क्लोरिन साहेव ने शाही परवाना आसानी से ला दिया और मानिक गुमाश्ता बहुत-सा विलायती सामान लेकर शिवाजी के निवास स्थान पर पहुंचा। शिवाजी तानाजी मलूसरे को पहचानते ही खुशी से उछल पड़े। पर तानाजी ने संकेत से उन्हें चुप रहने को कहा और सामान खोल-खोल कर मोल-भाव करने लगे। बीच-बीच में काम की बातें भी होती रहीं। शिवाजी ने कहा- "बुरे फंसे तानाजी, कहो क्या करना है ?" "चूहेदानी से निकलना होगा। आप यह वानात का थान देखिए । बहुत बढ़िया है।" उन्होंने थान फैला दिया । थान को उंगलियों से टटोलते हुए शिवाजी ने कहा--"लेकिन चूहेदानी से कैसे निकलना होगा ?" "उसका उपाय किया जायगा। पहले जो लोग बाहर हैं, उन्हें यहां से निकालिए।" "यह आईना भी मुलाहिजा फरमाइए।" आईने को एक ओर धकेलते हुए शिवाजी ने कहा- "आईना रहने दो, तुम्हें जो कहना हो कहो।" "महाराज, बादशाह से कहिए कि मुझे और मेरे पुत्र को यहाँ रहना ही है तो मेरे सरदारों और सिपाहियों को यहां से रवाना कर दें। आशा है, मूर्ख बादशाह खुशी से मंजूर कर लेगा।" "फिर तो मैं अकेला रह जाऊँगा।" "महाराज, तानाजी छाया की तरह आपकी सेवा में है। चिन्ता न कीजिए । सिपाहियों के रहते. आपके निकलने में बाधा होगी।" "ठीक है, उसके बाद ?" "उसके बाद आप बीमार हो जाइए। मुलाकात बन्द कर दीजिए । लाइए, थान के दाम दीजिए।" उन्होंने थान की तह करते हुए अशफियों के लिए हाथ फैला दिया। शिवाजी ने अशफियां तानाजी की ११७