अवतारी महापुरुषों में थे जिनका जन्म स्वतन्त्रता और नए राज्यों की स्थापना के लिए होता है। परन्तु महाराज जयसिंह बड़े ही मिठ- बोले दरबारी पुरुष थे, उन्होंने शिवाजी को अनेक प्रकार के प्रलोभन देकर और डरा-धमका कर आगरा जाने के लिए तैयार किया था । शिवाजी जब आगरा जाने का इरादा पक्का कर चुके तो उन्होंने बड़ी ही दूरदर्शिता और राजनैतिक सूझ-बूझ से काम लेकर अनुपस्थिति में अपने राज्य-प्रबन्ध की व्यवस्था की थी। उन्होंने अपने प्रतिनिधियों को शासन-सम्बन्धी पूरे अधिकार दे दिए थे और अपनी माँ जीजाबाई को राज्य का अभिभावक बनाकर ऊपरी देख-रेख का काम उन्हें सुपुर्द कर दिया । औरङ्गजेब ने चाहा था कि शिवाजी को फारम पर चढ़ाई करने भेजा जाय । इस काम में शिवाजी को लगाने का उसका उद्देश्य यह था, कि या तो शिवाजी वहां से जीवित लौटेगा ही नहीं और यदि लौटा भी तो कम से कम पांच वर्ष उसे इस अभियान में अवश्य लगेंगे । तब तक वह दक्षिण में अच्छी तरह अपने पंजे जमा लेगा । परन्तु जब यह खबर भागरे में प्रसिद्ध हुई कि शिवाजी को आगरे में लाया जा रहा है तो इस बात का बहुतों ने विरोध किया। विरोधियों में सबसे प्रमुख थी शाइ- स्ताखाँ की स्त्री जिसका अब भी बादशाह पर काफी असर था। वह बड़ी जोशीली औरत थी। वह शिवाजी से घृणा करती थी। वह उस भयानक रात की घटना नहीं भूली थी जब शिवाजी पूना के महल में घुस पड़े थे, और शाइस्ताखाँ को बड़ी कठिनाई से निकल भागने का अवसर मिला था। शिवाजी के हाथों से उसका एक पुत्र भी वध हुआ था । अतः उसने बहुत रो-पीटकर बादशाह की इस आज्ञा का विरोध किया और बादशाह का इरादा बदल दिया । परन्तु शिवाजी तो अब दक्षिण से चल चुके थे। राह खर्च का एक लाख रुपया अव उन्हें दिया जा चुका था । अतः शिवाजी को बीच में नहीं रोका जा सकता था। औरङ्गजेब ने अब यही निर्णय किया था कि आगरा आनेपर या तो उन्हें
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