हुए कटहरे से घिरा था। वहां बहुत देर तक शिवाजी को बादशाह के रूबरू जाने से प्रथम प्रतीक्षा में खड़ा रहना पड़ा। इसके बाद वजीरे- आजम का संकेत पाकर कुंवर रामसिंह उन्हें दरबार में ले गए। तख्त के सामने नीचे एक चौकी थी। उस पर भी चांदी का कटहरा लगा था और ऊपर जरी की झालर का एक बड़ा चंदुआ तना था । वहां के खम्भे भी जरी के कपड़े से मढ़े थे। फर्श पर कीमती कालीन बिछे थे । यहीं लाकर शिवाजी और शम्भाजी को खड़ा किया गया । शिवाजी ने यहां खड़े होकर तीन बार जमीन तक झुककर और हाथों को माथे से लगाकर शाही तरीके से बादशाह को सलाम की। और एक हजार मुहर नजर गुजारी तथा ५ हजार रुपए न्यौछावर किए। वादशाह ने एक बार नजर उठाकर शिवाजी की ओर देखा। एक कुटिल मुस्कान के साथ उसने आहिस्ता से कहा-"खुश आमदीद शिवाजी राजे," और उनकी ओर से आंखें फेरलीं। अब वजीरेआजम के संकेत से उन्हें तख्त के सामने ले जाकर पंच हजारी मनसबदारों की पंक्ति में खड़ा कर दिया। दरबार का काम चलता रहा और सब कोई शिवाजी को जैसे बिलकुल ही भूल गए। शिवाजी का मन दुख, सन्देह और क्षोभ से भर गया। वह पहले ही इस बात से खीझ रहे थे कि उनके प्रागरे पहुँचने पर आगरे से बाहर आकर किसी बड़े उमराव ने उनका स्वागत नहीं किया। सिर्फ कुंवर रामसिंह जो ढाई हजारी मनसबदार था और मुखलिसखां डेढ़ हजारी मनसबदार-इन दो मध्यम श्रेणी के उमरादों ने कुछ ही दूर आगे बढ़कर शिवाजी की अगवानी की थी। दरबार में भी उन्हें पाँच हजारी मनसबदारों की पंक्ति में खड़ा किया गया था। सालगिरह के उत्सव के पान सब उमरावों को दिए गए, लेकिन शिवाजी को पान भी नहीं मिला। जलसे की खिलअतें और सिरोपाव शाहजादों, वजीर जफरखाँ ११०
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