गतिविधि देखो। मेरे साथ पुत्र शंभाजी, तीन मन्त्री और एक सहस्र सवार रहेंगे। उन सवारों को चुन दो।" प्रस्थान कूच-दर-कूच करते जब शिवाजी आगरा से केवल एक मंजिल ही दूर रह गए, तो भी कोई बड़ा सरदार उनकी अगवानी को हाजिर नहीं हुआ। यह शिवाजी के प्रति एक असंभाव्य अशिष्ट व्यवहार था । और शिवाजी इस बात से खिन्न-मन आगरे की बात सोचने लगे। न जाने आगरे में औरङ्गजेब उनसे कैसा व्यवहार करेगा। मई के आरम्भिक दिन थे। दो प्रहर होते-होते प्रचण्ड गर्मी हो जाती थी। शिवाजी वहाँ दिन भर पड़ाव डाले पड़े रहे। सायंकाल तक भी उनकी अगवानी को कोई नहीं आया, तो वे अत्यधिक अधीर और क्रुद्ध हुए। इस समय उनके साथ एक हजार शरीर रक्षक सवार तथा तीन मन्त्री थे। परन्तु वे अपने मन की बात किसी से कहना न चाहते थे। उनके ललाट पर चिन्ता की रेखाएँ पड़ी थीं, तथा मुख गम्भीर हो रहा था । वे धीरे-धीरे टहल रहे थे और अपने ६ बरस के पुत्र शम्भाजी से बीच- बीच में बात भी करते जाते थे। बालक शम्भाजी को आगरा और बादशाह को देखने की बड़ी उत्सुकता थी । उसने पूछा-“बापू, दादाजी भाऊ कहते हैं, बादशाह बहुत बड़ा आदमी है। क्या वह हमारे हाथी से भी बड़ा है।" शिवाजी ने बालक के प्रश्न को सुनकर कहा-"नहीं बेटे, वह तो मेरी इस तलवार से भी छोटा है।" "लेकिन बापू, फिर सब लोग उससे डरते क्यों हैं ?" "कौन डरता है ?" १०१
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