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प्रस्तावना

पश्चिम के देशो में साधारणतः यह माना जाता है कि बहुसंख्यक लोगों का सुख—उनका अभ्युदय—बढ़ाना मनुष्य का कर्तव्य है। सुख का अर्थ केवल शारीरिक सुख, रुपये-पैसे का सुख किया जाता है। ऐसा सुख प्राप्त करने में नीति के नियम भंग होते हों तो इसकी ज्यादा परवाह नहीं की जाती। इसी तरह बहुसंख्यक लोगों को सुख देने का उद्देश्य रखने के कारण पश्चिम के लोग थोड़ों को दुख पहुँचा कर भी बहुतों को सुख दिलाने में कोई बुराई नहीं मानते। इसका फल हम पश्चिम के सभी देशों में देख रहे हैं।

किन्तु पश्चिम के कितने ही विचारवानों का