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सच्चाई की जड़

रुपये मिलेंगे, अपने को उतना ही पैसे वाला मानते हैं। वे यह नहीं सोचते कि उनके रुपयों का मूल्य उससे जिनसे खेत और पशु मिल सकें उतना ही है। साथ ही वे लोग धातु का, रुपयों का संग्रह करते है। वे यह भी हिसाब लगाते हैं कि उससे कितने मजदूर मिल सकेंगे। एक आदमी के पास सोना-चाँदी या अन्न आदि मौजूद है। ऐसे आदमी को नौकरी की क्या जरूरत होगी। परन्तु यदि उसके पड़ोसियों में से किसी को सोने-चाँदी या अन्न की जरूरत न हो तो उसे नौकर मिलना कठिन होगा। अतः उसे सालभर को अपने लिए रोटी पकानी पड़ेगी, खुद अपने कपड़े सीने पड़ेंगे और खुद ही अपना खेत जोतना होगा। इस दशा में उसके लिए उसके सोने का मूल्य उसके खेत के पीले फसल से अधिक न होगा। उसका अन्न सड़ जायेगा, क्योंकि वह अपने पड़ोसी से ज्यादा खा न सकेगा। फल यह होगा कि उसको भी