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सचाई की जड़


पर यह उत्तर ठीक नहीं है। व्यापारी रुपये कमाते हैं, पर वे यह नहीं जान सकते कि उन्होंने सचमुच कमाया या नहीं और उससे राष्ट्र का कुछ भला हुआ है या नहीं। "धनवान" शब्द का अर्थ भी वे अक्सर नहीं समझते। वह इस बात को नहीं जान पाते कि जहाँ धनवान होंगे वहाँ गरीब भी होंगे। कितनी ही बार वे भूल से यह मान लेते हैं कि किसी निर्दिष्ट नियम के अनुसार चलने से सभी आदमी धनी हो सकते हैं। सच पूछिए तो यह मामला कुएँ के रहट जैसा है। एक के खाली होने पर दूसरा भरता है। आपके पास जो एक रुपया होता है उका अधिकार उसपर चलता है जिसके पास उतना नहीं होता। अगर आपके सामने या पास वाले आदमी को आपके रुपये की गरज न हो तो आपका रुपया बेकार है। आपके रुपये की शक्ति इस बात पर अवलंबित है कि आपके पड़ोसी को रुपये की कितनी तङ्गी है। जहाँ गरीबी है वहीं