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सच्चाई की जड़

अच्छा ही होता है। यहां हम सहानुभूति को एक प्रकार की शक्ति मानकर ही उस पर विचार कर रहे हैं। स्नेह उत्तम वस्तु हैं,इस लिए उससे सदा काम लेना चाहिए। यह बिलकुल जुड़ी बात है और यहाँ हम उस पर विचार नहीं कर रहे हैं। यहाँ तो हमें केवल यही दिखाना है कि अर्थ शास्त्र के साधारण नियमों को,जिन्हें हम अभी देख चुके है,स्नेह-सहानुभृति रूपी शक्ति रद्द कर देती है। यही नहीं यह एक भिन्न प्रकार की शक्ति होने के कारण अर्थशास्त्र के अन्यान्य नियमों के साथ उसका मेल नहीं बैठता|वह तो उन नियमों को उठाकर अलग रख देने पर ही टिक सकती है। यदि मालिक कांटे की तौल का हिसाब रक्खे और बदला मिलने की आशा से भी स्नेह दिखाये तो सम्भव है कि उसे निराश होना पड़े। स्नेह स्नेह के लिए ही दिखाया जाना चाहिए बदला तो बिना मांगे अपने-आप ही मिल जाता है। कहते हैं कि जो खुद अपनी जान दे देता