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म्या.] धार शाति पापत के दिन लाली लगा पर साफे को ६।धार लोग मुरों को मदी किनारे उलटा दमा 'पराया जाता है। तांगो पर सयार पचास देते हैं। पाने का रियान इनमें पास कम है। Fउ मनुष्य धूम-धाम मे पारात आने ६। लपके दूसरे तीसरे राज म फी "टीरो" की जाती है। रापदनाई दे के साथ उसफा रक्षक पम पर दिपाटी पर उसके नाम से कुछ परस, पर्वन पार पाय साप पाता है। ममुराल के प्रांगन में पारात प्रम मेहतर को दे दिया जाता है । यस उससे उसय करती है। सभी की मामी मर पर टोटा पार हो जाते है। सटे पर असता तुमा चिराग रग पर दुग्नी फीम जाति का मुग्न्य व्यवसाय प्रापि है। अन्य सपी के पास माचती पार अपना एफ लेती है। कृषकों को इस कार्य में जो कटिनाइयां मागनी दे के राफ को भी माचना पड़ता है। उससे परती है उनसे ये बहुत पुण् मुक्त है। क्योंकि एपि प्रया प्रसभ्य ऐन करतो मायर सलने की तीन पायपयकताये--अम, पन पीर धरती- समय लड़की की पदिन पार मामी पर-पम्या की गहें यथेट मात । सम्मिालत फुटुम्प प्रथा के कारण र साह पर उन्हें गा कर देती हैं। माकी इन्हें मजदूरी की ज़रूरत महों पड़ती। हर थारू कुछ प पर, सड़क या दापण कर पन्यादान की गम्म गाये ज़रूर पान्दता है । इस कारण पैल परीदने पदा की जाती है। भायरें पाती। गोपरी में में साहकारो केटोळे कुठार से यह पाहत महाँ 13ापार यर पार पक पार करया मागे रहती है। ता । ननीताल जिले का यह सराई माग "साम" तसरे दिन प्राताफाल. पा-पीकर पारात पिदा है। एपक सरकार को गान देते है। इस कारण तो है। थारु लोगों को जमीदारी की साल पीसी पारों कापून्दन के सायदा तीन रिसर्या दृम्द के पर नहीं देखनी पड़ती। इनकी अप्न-राशि जमीदारों के माती है । घर पाने पर दोनों के पीय दूल्द की पाल में बच जाती है। बहन नाचतो पार, अपना दफ़ लेती है। मामी यामे इन लोगों का साधारण माहार माह पार के साप ३०,२: पादमी शाम तक न्दं के घर मएली है। उत्तम धेशी के लोग दोनो पता भास प्राजाते हैं। उनके पादर-सत्कार लिप का पो पाते हैं। परसात में पदस सी मछलियां सुखा कर मे पतदर्थ पाले हुए पकरे काटे जाते हैं। बहुत सी या भून कर ये रग इसे ६। ये पारद महीने शियम मैगाई जाती है। पार-माय की दिन गत काम पाती है। मादौ-कुंमार में पास लोगों के म यूम रहती है । यिम्म भरना दूल्द का मुख्य काम एप्पर मछलियों से पट जाते है।। मारे पद के होता है । पंशारत में पहला पार हुँार में दूसरा प्रांगन में ठहरा महीं जाता । मछली के सिया पर गाना हो जाता है। जानयरी फा मांस भी पे पाते हैं। पर का थारुजाति अपने देयता को दी दुस- शिकार इन्हें बहुत पसन्दा शिकार सेकने के फन्दे, । मुथ का कारण समझती है। इस कारण पर्यो, माल पार, हथियार ये लुद मावे है। ये मदिरा सावरी पार अस्पतालों की अपेक्षा अपने स्यानो अद्भुत पीते पार मुर्गियां पालते हैं। इतने मांसाहारी (भरारों ) पर ससकी अधिक प्रया है । स्याने होने पर भी इनके घर पार पर्तन पात साफ रहते मोग अपने देयतामों पर शयम, मुर्गे तथा थकरे चढ़ा है। पुरुष प्रायः पादर खामा खाते हैं। मगर लिया कर रोगी फी नीरोग करते है। थारू इनकी माझा चाके से बाहर महासा सकतीं। . पर अपना सर्यस्य म्योडायर करने को तैयार रहतं या जाति के कई व्यवहार हिन्दुओं से मिल