पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/७३०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. इंडियन प्रेस, प्रयाग के रंगीन चित्र भक्ति-पुष्पांजलि - अहल्या माकार-n"xi" दाम ) भामर-1x1" दाम . ' एक सुन्दरी शिवमन्दिर के द्वार पर पहुँच गई गौतम ऋषि की स्त्री प्रहल्या प्रलौकिक सुन्दरी है। सामने ही शिवमूर्वि है। सुन्दरी के साथ एफ थी। इस चित्र में यह दिखाया गया है कि प्रहल्या पालक और हाथ में पूजा की सामग्री है। इस पन में फुल चुनने गई और एक फूल दाय में लिये चित्र में सुन्दरी के मुख्य पर, इष्टदेव के दर्शन और सड़ी कुछ सोच रही है। सोच रही है देयराम इन्द्र मति से होने वाला प्रानन्द, मसा और सौम्पवा के के सौन्दर्य को उन पर वह मोहित सी हो गई है। माष पढ़ी सूवी से दिखलाये गये हैं। इसी प्रयस्मा को इस चित्र में पतुर चित्रकार ने बड़ी कारीगरी के साथ दिखलाया है। चैतन्यदेव भाकर-1" x" वाम । मान शाहजहाँ की मृत्युशय्या महाप्रम पदन्यदेव बंगाल के एक अनन्य मक भामर~1:"." म my • वैष्णव हो गये हैं। ये कृष्ण का अषयार और पप्पय शाहजहाँ पादशाह को उसके कुचकी मेटे पारंग- -- धर्म के एक मापार्य माने माते हैं। ये एक दिन घूमते जेब ने घोखा देकर फैद कर लिया था। उसकी प्यारी __ विचरते जगमावपुरी पहुँचे। वहाँ गरुस्तम्म के नीचे पेटी जहाँनारा मी पाप के पास कैद की हालत में ., खड़े होकर दर्शन करते करते थे भक्ति के प्रानन्द में रहती थीं । शाहजहाँ का मृत्युकाल निकट है, जहां- बेसुध होगये। उसी समय के सुन्दर दर्शनीय भाव नारा सिर पर हाथ रखे हुए चिन्वित हो रही है। इस चित्र में पड़ी खूबी के साप दिसझाये गये हैं। उसी समय का एश्य इस चित्र में दिखलाया गया है। शादमद्दों के मुख पर मृत्युकाल की दशा पड़ी भी बुद्ध-वैराग्य . खूपी के साप दिसलाई गई है। प्राकार--12" x २३" पाम ). संसार में प्रईिसा-पर्म का प्रपार करने वाले भारतमाता मदास्मा पुर का नाम जगत् में प्रसिद्ध है। उन्होंने प्राकार--1.2xt" वाम , राम्पसम्पचि को लात मार कर वैराग्य प्रहख कर इस चित्र का परिचय देने की अधिक मापश्य- लिया था। इस पित्र में महात्मा पुरा ने अपने राम- कसा नहीं । जिसने हमको पैदा किया है, ओ छमारा चिों को निर्यन में जाकर त्याग दिया है। उस समय पालन कर रही है, मिसके दम कहलाते हैं, और जो के, पुरके मुख पर, पैराग्य और अनुबर के मुख हमारा सर्वस्व है उसी जननी जन्मभूमि मार-मावा पर प्रारचर्य के लिए इस चित्र में पड़ी खूबी के साथ का वपस्विनी ग्रेप में यह दर्शनीय पिन मनाया गया दिखलाये गये हैं। पुस्तक मिटने का पता-मेनेजर, इंडियन प्रेस, प्रयाग ।