पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६८८

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संख्या ६] विषिष विपय। www समर्पित की गई है। सम्भव है. सटर साहा काबिपास कारी मुखालिम, पीय, बारिस्टर और रार प्रादि । की कविता के मच्छ मर्म हो। बस और जय नहीं । इसका मो पर हो रहा है किसी . २-उपोग पन्धे की महत्ता। से चिपा महीं । कीच आप पर पाप एक्से 48k। कितने दी गठरों को प्रपा रोग की भी मामदनी महा। सरकारी सभिचना को म्यूच रष्टि से भी देखने पर यही माम मुखानिमत का पहास कि पी.ए. पास बीस सयं देता है कि प्रकृति पा परमेश्वर को मिम्ता पसन्द है- महीने की मानीमातामापात पाकि पूफी, इसे मानावी प्रचा मगता है। स्पावर और ग्राम, पातीचार फेयोमरोसे किसी भी देश की रोटिर्या मिस पार अपर, पिम्स और मापुर मिस किसी महींपस सकती । मारत तो बहुत विस्तृत देवा है। इस में देखिए सर में प्राकार, बर्ष मार भायम की मिता पणा में इन शो सारा पदुत ही यो मोगों का मदर- से रिसाई देगी। सबके भीतर एकही मारमा श्री म्पोति पोपए हो सकता है। प्रतएव भव रस भोर से हमें अपना का प्रकम्य होने पर भी बाहरी स्पा सब का सराहा मन इन कर पापार-वासिम्प, सास और ग्योग- है। मनुष्य स्मों एक ही वह पदार्थ देखते देखते का यायेकी और घगना चाहिए। इसीसे हमारा कस्पाय हो. जाता क्यों बदमये मपे मोम्प पदार्थ पाने कीपा समता है। इसीसे देश की प्रम-सम्पत्ति कर सकती है। स्मता है। इसी विए कि परमारमा मे इसका सभावी इसीप्से विधादान की भी पति हो सकती है। प्रम में पड़ा क्स कुछ ऐसा पमा रिमा किसे मिपता ही भणी बगती है। धनवानों की संबाबाने पर पदि ग्नमें से 4 सदी एक है। षष्ठि का गोश ही इस पेसाही नियम धाफिक विप में मी चरितार्य है। शिक्षा पीर विधा को देखिए। भी अपनी कमाईमप्रयाप योग-पापे और कमा-कीराव की शिक्षा देनेवाये व बोलने के लिए पेमे की इसा करेगा समी को विज्ञान पसन्द नहीं। इसी तरह सभी को साहिल वो इस प्रकार की गिरा की बात गमति हो जायगी। पसन्द नही। योगपित से प्रेम रखता है, कोई इतिहास से, कोई सम्पत्तिमा से कोई काम्म से, कोई किसी से, इस सम्बन्ध में गवर्नमेंट का विरोप रोप नहीं।पा कोई किसी से । पिन, समय में ही माता कि हमारे हों • जानती किमयोग हाम से पीड़ा गठाने की अपेक्षा और कालेजों में व्यापी और मित मित प्रकार एवम पामना दी इयतका काम समम । फिर पापको पेयो-योग-मन्मों-की शिक्षा का विशेष प्रकप स्पों यानिशा सा पोचे। दो एक ग्मने मोम रमले। माही ? परमो कदापि सम्मवीमही कि इस प्रकार की सभी पास सममती है। हमें पाहिए कि हम अपनी गिषा बामदायक न समझी जाती ये अपना इसकी प्रति दुर्वध पूर्व-प्रतिको सिमाजरि २२ ।हाप में पानी और की इक्षा भोग रसते पर शिपातो सारी बौकिक पसूची, भारी पौर पदा, साम और ममता और मातियो को ।हाँ इस शिपा का रामबाप- मित्र मिस शो का काम सौखें। चार कुबम पम पर महा विद्यासी योग-पन्ये में गे हुए है-वहाँ की तो पेपरवा यनाना सी, स्टार्ग पनाना सीखें, मिझे स्या दतारा मसिम्म कर तो देखिए । वे मालामाल के सिनीले बनामा सीखें। इसके लिए , सारों के मूग FIमी इनकी दासी हो रही है। संसार उनके सामने यम की प्रारयता, न बास दिन काम सीसने की पाप- मत मस्तरामवपुष इस शिपा की महब सिकरनेके रपसा, नही दूर ने की प्रापरपम्ता । वस पत्रा सिएन प्रमाय परमर न रखीखें । इमाफी मात्र तो की नारी श्री अपेक्षा इस म्यवसापो से हम प्रमिकमा समंसिद। सकते हैं। ऐसा माना पीरो रेडिए पाहस्य होगा, हमारी वर्षमान पा का रंग अप्राकृतिक प्रति स्वामियम लेगा, पन की पदि होगी, और पौरे धीरे महीपाती कि सब पदार्थ-सप मनुष्य-पक ही सांचे में बड़ेम्पक्सार करने की प्रति गारवो वापणी । योग- ये बाप । पर हम योगों की शिकारांचा मारा एकदी प्रेम के प्रस्या प्रमाण पाने पर, प्रत्या, गवर्नमेंट भी हमें प्रकार का है। शिका प्रम्स परके मोग या पपवे . रतावर अधिक सहायता देगी।